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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ग्रहणीरोग
६३५३ लवङ्गा चूर्णम् ग्रहणी, शूल, विष्टम्भ, ६४३३ लोहसार कल्पः हर प्रकारकी ग्रहणी, आम, आनाह
शोथ, शूल ६३५६ लाई चूर्णम् संग्रहणी और सूतिका ६४४३ लोहामृत रसः वातज, पित्तज, कफज, रोगमें अत्युत्तम्
रक्तज ग्रहणी ६३५७ ,, ,, (मध्यम) ग्रहणी, प्रवाहिका ६९२७ वज्रकपाट रसः सर्व दोषज ग्रहणी ६३५८ ,, ,, (लघु) संग्रहणी, शूल, अफारा ६९२८ ,,, असाध्य ग्रहणीको भी ६३५९ , ,, (लघु) संग्रहणीनाशक, दीपक
नष्ट कर देता है ६३६० ,,,, संहग्रणी, अतिसार । | ६९३० वज्रधर रसः ग्रहणी, पक्तिशूल, कास ६३६१ ,,, (वृहत्) संग्रहणी, शोथ, वि- ६९५५ वडवानल रसः विविध प्रकारकी संग्रष्टम्भ, शूल, जीर्ण ज्वर
हणी, ज्वर ६३६५ लाविका चूर्णम् ग्रहणी, शोथ, वमन, ६९६० वराटादि योगः संग्रहणी
(मध्यम) शूल, अरुचि ७०१८ विजय पर्पटी - बहुत वर्षोक पुरानी ६३६६ , , ग्रहणी, आम, शोथ,
कष्ट साध्य संग्रहणी, (वृहत्) शूल
भयंकर पुराना आम ६३७२ लोकनाथ रसः संग्रहणी
शल, प्रवाहिका आदि ६३९६ लोहपर्पटी कष्ट साध्य संग्रहणी, ७०१९ , , ऊपरके समान
आम, उदावर्त, शूल | ७०२४ विजयसिन्दूररसः कष्ट साध्य संग्रहणी ६४२४ लोहरसायनम् वातपित्तज ग्रहणी | ७०२७ विजया वटिका हर प्रकारको ग्रहणी . ६४२५ " "
| ७११० वृहत्कामेश्वर मो६४२६ , ,
दकः - संग्रहणी, उदरविकारवातकफज "
७११७ वृहन्नृपवल्लभरसः ग्रहणी, अजीर्ण उदररोग उग्र वातज, ७११९ वैद्यनाथ वटी ग्रहणी, अग्निमांद्य, ज्वर
पित्तज कफज
, ,
rurur
६४२८
"
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.
(२३) छदिरोगाधिकारः
कषाय-प्रकरणम्
| ५०३९ मुद्गादि कषायः छर्दि, अतिसार, दाह, ५००८ मरिचादि हिम छर्दि, तृषा
(सरल योग) ५०३८ मुद्गादि कषायः वमनको तुरन्त रोकता
है (सरल योग) ५०४२ मुद्गामलकयूषः छर्दि
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