________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
८००
वातजं पित्तजं शूलं कफजं द्वन्द्वजं तथा । परिणामसमुत्थञ्च सन्निपातसमुद्भवम् ॥ अष्टादशविधं कुष्ठं पाण्डुरोगं भगन्दरम् । मन्दानं गुदञ्चैव जयेदेतन्न संशयः ॥
www.kobatirth.org
भारत - भैषज्य रत्नाकरः
८ सेर त्रिफला चूर्णको ६४ सेर पानी में पकावें और १६ सेर शेष रहने पर छान लें। तदनन्तर उसमें ५० पल ( ३ सेर १० तोले ) लोह भस्म और ५० पल गिलोय का चूर्ण, २ सेर घी एवं १० - १० तोले गुडूचीकन्द, केले की जड़, तालमूली, जवासा, चीता, पीपलामूल, चव, सफेद और काला जीरा, दालचीनी, इलायची, शुद्ध भिलावा, सोंठ, मिर्च, पीपल, जवाखार, सज्जीखार, सेंधा नमक, काला नमक (संचल ), विड लवण, बायबिडंग, सुहागा और अजवायनका चूर्ण मिला कर पुनः पकावें । जब गुड़के समान गाढ़ा हो जाय तो अग्निसे नीचे उतार कर रख दें और ठण्डा होने पर स्निग्ध पात्र में भर कर सुरक्षित रक्खें ।
इसे घी और शहद में मिला कर सेवन करने और पथ्य पालन करने से वातज पित्तज, कफज
( मात्रा - १ माशा | )
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ वकारादि
वृहत्सर्वज्वरहरलोहः
सर्व ज्वर हर लोह ( बृहत् ) देखिये |
वृहदग्निकुमाररसः
( रसे. सा. सं. ; र. चं. । अग्निमांद्या. ) प्र. सं. २६१ अग्निकुमार रस (२९) देखिये ।
वृहदग्निकुमाररसः
( २से. चि. म. । अ. ९ )
प्र. सं. २५४ अग्नि कुमार रस (२२) देखिये ।
बृहद निकुमाररसः
( रसे. सा. सं. । अग्निमांद्या. )
प्र. सं. २५९ अनि कुमार रस (२७) देखिये ।
(७११३) वृहदिच्छा भेदीरसः
( र. चं. ; रसे. सा. सं.; र. रा. सु. ; धन्व. । उदावर्ता ; रसे. चि. म. 1 अ. ९ ) शुद्धं पारदरङ्कणं समरिचं गन्धाश्म तुल्यं त्रिवृत् । विश्वा च द्विगुणा ततो नवगुणं जैपालचूर्ण
क्षिपेत् ॥
और द्वन्द्वज शूल, परिणाम शूल, सान्निपातिक शूल, १८ प्रकारके कुष्ठ, पाण्डु, भगन्दर, अग्निमांद्य और खल्ले दण्डयुगं विमर्ध विधिना चार्कस्य पात्रे अर्शका नाश होता है ।
For Private And Personal Use Only
ततः ।
स्वेद्यंगोमयवह्निना च मृदुना स्वेच्छावशाद्भेदकः ॥ ममितो रसो हिमजलैः संसेवितो रेचयेत् । यावोष्णजलं पिवेदपि वरं पथ्यं च दध्योदनम् ॥
वृहत्पूर्णचन्द्ररसः
प्र. सं. ४४३३ पूर्ण चन्द्रो रस: ( ४ ) | आमं सर्वभवं सुजीर्णमुदरं गुल्मं विशालं हरेत
देखिये |
वर्दीतिक बलाशहरणः सर्वामयध्वंसनः ॥