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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७९८ (७११०) बृहत्कामेश्वरमोदकः ( धन्व. । वाजी ; र. र. | वाजी. ) निश्चन्द्रिकाभ्रं पलमात्रभागं लोहस्य वङ्गस्य तदर्द्धभागम् । जातीफलं कोषफलं च जीरा भारत - भैषज्य रत्नाकरः वानिका चाथ पलममाणम् || af द्विभागं त्रिसुगन्धि कुष्ठं मांसी मुरा कुन्दरु देवदारु । चाम्पेयसिन्धुद्भव वालचव्यं सौभाग्ययष्टिमधुग्रन्थिपर्णम् ॥ तालीशकर्पूरलवङ्गकान्ता aratलिका युग्म कटुकं च । शैलेयपद्मं सरलं सपुष्पं Tatararaatजधान्यम् ॥ शृङ्गी शताहा त्रिफलाथ मेथी श्यामायं कृष्णतिलं कशेरु । www.kobatirth.org शक्राशनं तत्सदृशं विभागं सिता च शुभ्रा द्विगुणा विधेया ॥ तत्पाकवेत्ता विधिवदिधानं लब्ध्वाधिवासं नयनागरेण । मध्वाज्यमिश्रं वटकप्रमाणं खादेन्नरः कौण्डकमङ्गलेन ॥ सर्वानां शमनं विधेयं विशेषतः सङ्ग्रहकोष्ठदोषम् ॥ निश्चन्द्र, अभ्रक भस्म ५ तोले, लोह और बंग भस्म २ ॥ - २॥ तोले तथा जायफल, कंकोल, जीरा और अजवायन ५-५ तोले, एवं दालचीनी, तेजपात, इलायची, कूठ, जटामांसी, मुरामांसी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ वकारादि कुन्दुरु, देवदारु, नागकेसर, सेंधानमक, सुगन्ध बाला, चव, सुहागेकी खील, मुलैठी, गठीवन, तालीसपत्र, कपूर, लौंग, रेणुका, काकोली, क्षीर काकोली, सोंठ, मिर्च, पीपल, छरीला, कमल, धूपसरल, सुपारी, गजपीपल, इन्द्रजौ, धनिया, काकड़ासिंगी, सोया, हर्र, बहेड़ा, आमला, मेथी, सफेद सारिवा, काली सारिवा, काले तिल और कसेरु; इनका चूर्ण २॥ -२ ॥ तोले और भांगका चूर्ण सबके बराबर एवं इन सम्पूर्ण ओषधियांसे २ गुनी खांड लेकर यथा विधि चाशनी बना कर उसमें सम्पूर्ण ओषधियोंका चूर्ण मिला कर अन्त में थोड़ा थोड़ा घी और शहद डाल कर (६ - ६ माशेके) मोदक बना लें । ये मोदक संग्रहणी और उदर विकारों में विशेष उपयोगी हैं । वृहत्क्रव्यादरसः ( यो. र. र. रा. सु. । अजीर्णा ; वृ. यो. त । त. ७१ ) प्र. सं. १०५२ क्रव्याद रसः देखिये । कई ग्रन्थों में विड लवणके स्थान पर काला नमक लिखा है । (७१११) वृहत्क्षय केशरीरसः ( भै. र. । राजय . ) मृतमभ्रं मृतं सूतं मृतं लौहञ्च ताम्रकम् । मृतं नागश्च कांस्यश्च मण्डूरं विमलं तथा ॥ वङ्गं खर्परकं तालं शङ्खटङ्गणमाक्षिकम् । वैक्रान्तं कान्तलौहश्च स्वर्ण विद्रुममौक्तिकम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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