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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५ घृतपकरणम् ] चतुर्थों भागः धन्वयवासं चन्दनमुपकुल्यापद्मकं रजन्यौ च । । पर पकावें । जब जलांश जल जाय तो घृतको षड्यन्यां सविशालां शतावरी सारिवे नोभे॥ | छान लें। वत्सकबीजं वासां मूममृतां किराततिक्तं च । यह घृत सब प्रकार के कुष्ठ, रक्तपित्त, कल्कान्कुर्यान्मतिमान्यष्टया त्रायमाणां च ।। भयंकर रक्तार्श, विसर्प, अग्लपित्त, वातरक्त, पाण्डुकल्कस्तु चतुर्भागो जलमष्टगुणं रसोऽमृतफला- रोग, विस्फोटक, पामा, उन्माद, कामला, कण्डू, नाम् । । ज्वर, हृदोग, गुल्म, पिडिका, स्त्रियोंका रक्तप्रदर द्विगुणो घृतात्पदेयस्तत्सर्पिः पाययेत्सिद्धम् ॥ और गण्डमालाको अत्यन्त शीघ्र नष्ट कर देता है । कुष्ठानि रक्तपित्तं प्रबलान्यशीसि रक्तवाहीनि । उचित मात्रानुसार, यथोचित समय पर सेवन वीसर्पमम्लपित्तं वातामुक्पाण्डुरोगं च ॥ करानेसे यह घृत सैकड़ों प्रयोगोंसे आराम न होने विस्फोटकान्सपामानुन्मादं कामलां ज्वरं कण्डूम्। वाले भयंकर रोगोंको भी नष्ट कर देता है । हृद्रोगगुल्मपिटकानमृग्दरं गण्डमालां च ।। हन्यादेतत्सद्यः पीतं काले यथावलं सर्पिः । (५२३६) महातिक्तकं घृतम् (२) योगशतैरप्यजितान्महाविकारान्महातिक्तम् ॥ | (ग. नि. । घृता.; यो. चि. । अ, ५) कल्क-सतौनेकी छाल, अतीस, अमलतासका करअसप्तच्छदपिप्पलीनां गूदा या छाल, कुटकी, पाठा, नागरमोथा, खस, हर्र, मूलानि कृष्णा मधुकं विशाला । बहेड़ा, आमला, पटोल, नीमकी छाल, पित्तपापड़ा, यवासकं चन्दनमुत्पलं च धमासा, सफेद चन्दन, पीपल, पद्याख, हल्दी, स्यात्रायमाणा कटुका वचा च ।। दारुहल्दी, बेच, इन्द्रायणकी जड़, सतावर, दो | उशीरपाठातिविषारजन्यः प्रकारको सारिवा, इन्द्रजौ, वोसा, मूर्वा, गिलोय, किराततिक्तं कुटजस्य बीजम् । चिरायता, मुलैठी और त्रायमाणाx | प्रत्येक १-१ | निम्बासनारग्वधमालतीनां तोला लेकर सबको एकत्र पीस लें। पत्राणि मूलानि च कण्टकार्याः ।। २४८ तोले ( ३ सेर ८ तोले ) धीमें शतावरीपद्मकदेवदारु ६ सेर १६ तोले आमलेका रस और २४ शेर ६४ मुस्तानि कालीयककेसराणि । तोले पानी तथा उपरोक्त कल्क मिलाकर मन्दाग्नि वासागुडूचीनतसारिवाश्च बला पटोलं त्रिफला च मूर्वा ।। xसुश्रुत संहितामें खस, पीपलामल और दामहल्दीका नीपं कदम्बो धववेतसौ च अमाव है, सरिवा एक ही प्रकारकी लिखी है तथा __कर्कोटक पर्पटकं पयस्या। बाराहीकन्द अधिक है। शा. ध. में बच का अभाव है और मजीठ तथा वाराहकन्दं मदयन्तिका च कचूर अधिक है। ब्राह्मी समगार्षभकं बला च ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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