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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
यह चाङ्गेरी घृत रक्तगुल्म और पित्तार्श तथा रक्ता एवं सन्निपाता में विशेष उपयोगी है । तथा बल मांसकी वृद्धि करता है ।
(५२३४) महाचैतसं घृतम् (१) ( भै र । उन्माद; व से; वृ. मा. । अप; च. द. | अपस्मार. )
शस्त्रिवृत्तथैरण्डो दशमूली शतावरी । रास्ना मागधिका शिग्रुः क्वाथ्यं द्विपलिक भवेत् ॥ विदारीमधुकं मेदे दे काकोल्यौ सिता तथा । एभिः खर्जूरमृद्धीका भी रुयुञ्जातगोक्षुरैः ॥ चैतसस्य घृतस्याङ्गैः पक्तव्यं सर्पिरुत्तमम् । महाचैतससंज्ञं तु सर्वापस्मारनाशनम् || गरोन्मादप्रतिश्यायतृतीयकचतुर्थकान् । पापालक्ष्मी जयेदेतत्सर्वग्रहनिवारकम् ॥ श्वासकासहरञ्चैव शुक्रार्त्तवविशोधनम् । aari का विधिरिह चैतसवन्मतः ॥ कल्कश्चैतसकल्कोक्तद्रव्यैः सार्द्धश्च पादिकः । freiraकाप्राप्तौ तालमस्तकमिष्यते ॥
काथार्थ - शणबीज (सन के बीज ), निसोत, एरण्डमूल (रैंडी की जड ), दशमूल, शतावर, रास्ना, पिप्पली, सहिजने की जड़ प्रत्येक २ पल ( १० तोले ), पाकार्थ जल ३२ सेर । अवशिष्ट क्वाथ ८ सेर । कल्क-विदारीकन्द, मुलहठी, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, खांड, खजूर, मुनक्का, शतावर, युञ्जातक ( कन्दविशेष), गोखरू, तथा स्वल्पचेतस घृत में कहा कल्क;
૧ इन्द्रायण, हर्र, बहेड़ा, आमला, रेणुका, देवदारु,
[ मकारादि
सम्पूर्ण मिति ४० तोले । इस से २ सेर घृत का पाक कर सेवन करावें । इस के सेवन से अपस्मार, गरदोष, उन्माद, प्रतिश्याय, तृतीयक ज्वर, चातुर्थक ज्वर, श्वास, कास आदि रोग नष्ट होते हैं। यह घृत वीर्य तथा रज का शोधक है । यदि युञ्जातक न प्राप्त हो तो उसके स्थान पर तालमस्तक डाला जाता है । मात्रा - आधा तोला । महाचैतसं घृतम् (२)
( वृ, यो त । त, ८८; भा. प्र. । म. खं. उन्मादा. )
प्र. सं. १७८३ देखिये ।
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" चैतस घृत उसमें और इसमें केवल इतना ही अन्तर है कि इसमें ( महाचैतसमें ) क्वाथ्य द्रव्यों में बेल - छाल, अरलुकी छाल, पादलकी छाल और अरनी अधिक है ।
"
(५२३५) महातिक्तकं घृतम् (१)
( वृ. मा.; च. द.; र. र.; वं. से.; यो. र. । कुष्ठा.; शा. ध. । ख. २ अ. ९; वृ यो त । त. १२०; च. सं. । चि. अ. ७. कुष्ठ; ग. नि. । घृता; वा. भ । चि. अ. १९. सु. स. । चि. अ. ९.)
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सप्तच्छदं प्रतिविषां शम्पाकं तिक्तरोहिणीं पाठाम् । मुस्तमुशीरं त्रिफलां पटोलपिचुमन्दपर्पटकम् ॥ एलवालुक, शालपर्णी, तगर, हल्दी, दारूहल्दी, २ प्रकारकी सारिवा, फूलप्रियंगु, नीलोफर, इलायची, मजीठ, दन्तीमूल, अनारदाना, नागकेसर, तालीसपत्र, बड़ी कटेली, चमेलीकी कलियां, बायबिडंग, पृष्टपर्णी, कुठ, सफेद चन्दन और
पयाक