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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि निहन्ति सर्वकुष्ठानि पानाभ्यङ्गनिषेवणात् । (५२३२) महागुडूचीघृतम् महाखादिरमित्येतत्परं कुष्ठविकारनुत् ॥ (भा. प्र.; व. से. । वातरक्ता.) | अमृतायाः शतं प्राप्य जलद्रोणे विपाचयेत् । खैर ५ तुला (३१। सेर), शीशम (शोशम- चतर्भागावशिष्टन्तु घृतपस्थं विपाचयेत् ॥ का बुरादा) १ तुला (६। सेर), असना (शालभेद) क्षीरं चतुर्गुणं तत्र दापयेन्मतिमान् भिषक् । १ तुला, करञ्जकी छाल ३ तुला (३ सेर १० कल्कचात्र प्रवक्ष्यामि यथावदनुपूर्वशः॥ तोले), नीमकी छाल ३ तुला, बेत ३ तुला, पित्त- काकोली क्षीरकाकोली जीवकर्षभकौ च यत् । पापड़ा, कुडेकी छाल, बासा, बायबिडंग, हल्दी, शतावरी पयस्या च मधुकं नीलमुत्पलम् ॥ दारुहल्दी, लताकरञ्ज, गिलोय, हरी, बहेड़ा, अश्वकन्दस्य मूलानि स्थिरां वा कटुरोहिणीम् । आमला, निसोत और सतौनाकी छाल आधा आधा ऋद्धिं वृद्धि तथा मेदे श्वदंष्ट्रां बृहतीद्वयम् ॥ तुला (प्रत्येक ३ सेर १० तोला) लेकर सबको गुडूचीं पिप्पली रास्नां वासकं चापि संहरेत् । एकत्र कूटकर १० द्रोण (३२० सेर ) पानीमें | तदेकस्थं समैर्भागः पाचयेन्मृदुनामिना ॥ पकावें । जब ४० सेर पानी शेष रहे तो छान लें। पानाभ्यञ्जननस्येषु परिषेके च दापयेत् । वातरक्तं सशोपाढयं सदाहं क्रोष्टुशीर्षकम् ॥ कल्क --सतौनेकी छाल, अतीस, अमल | खओरुस्तम्भवातश्च वातरक्तं सुदारुणम् । तासका गूदा या छाल, कुटकी, पाठा, नागरमोथा, बहूदितं वातकुच्छं गृध्रसीं वातकण्यकम् ॥ खस, हर्र, बहेड़ा, आमला, पटोल, नीमकी छाल, | | नाशयेद्योजितं सर्पिर्धन्वन्तरिवचो यथा ॥ पित्तपापड़ा, धमासा, सफेद चन्दन, पीपल, ६। सेर गिलोयको १ द्रोण ( ३२ सेर) पद्माख, हन्दी, दारुहल्दी, वच, इन्द्रायण, सतावर, । पानीमें पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रहे तो दो प्रकारकी सारिवा, इन्द्रजौ, वासा, मूर्वा, गिलोय, छान लें तत्पश्चात् २ सेर धीमें यह क्वाथ और चिरायता, मुलैठी और त्रायमाणा १-१ पल ८ सेर गोदुग्ध तथा निम्नलिखित कल्क मिलाकर (प्रत्येक ५ तोले) लेकर सबको एकत्र पीसलें । पकावें । जब दूध और क्वाथ जल जाए तो घोको छान लें। विधि--८ सेर धीमें उपरोक्त क्याथ, कल्क कल्क---काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, और ८ सेर आमलेका रस मिलाकर पकायें । जब ऋषभक, शतावर, बिदारीकन्द, मुलैठी, नीलोफर, जलांश जल जाय तो घृतको छान लें। असगन्ध, कुटकी, शालपर्णी, ऋद्धि, वृद्धि, मेदा, इसे पीने और मालिश करनेसे समस्त प्रकारके महामेदा, गोखरु, कटेली, बडी कटेली, गिलोय, कुष्ठ नष्ट होते हैं । यह कुष्ठ विकारों के लिए | पीपल, रास्ना, और वासा सब चीजें समान भाग अत्यन्त उपयोगी औषध है। मिश्रित २० तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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