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रसप्रकरणम् ]
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चतुर्थी भागः
(७०३१) विडङ्गादिचूर्णम् (१) ( यो. र. । शोफा. )
विडङ्गदन्तीकटुकानिच्चित्रकदारवः । व्योषः सकृष्णा त्रिफला समा देया हायोरजः ॥ द्विगुणं तत्पच्चूर्ण पयसा शोफशान्तये ||
बायबिडंग, दन्तीमूल, कुटकी, निसोत, चीता, देवदारु, त्रिकुटा, पीपल और त्रिफला १-१ भाग तथा लोहभस्म सबसे दो गुनी ले कर यथा विधि चूर्ण बनावें ।
इसे दूध के साथ सेवन करने से शोथ नष्ट होता है ।
( मात्रा - ३ रत्ती । ) (७०३२) विडङ्गादिचूर्णम् (२) ( व. से. । रसायना. ) विडङ्गासनधात्रीणां चूर्ण लोहरजो घृतम् । एतत्संप्राश्य वृद्धोऽपि तारुण्यमधिगच्छति ॥
बायबिडंग, असना वृक्षकी छाल और आमला; इनका चूर्ण तथा लोह भस्म समान भाग लेकर सबको एकत्र मिला 1
इसे घीके साथ सेवन करने से वृद्ध भी तरुणसमान हो जाता है ।
( मात्रा - १ माशा ) (७०३३) विडङ्गादिचूर्णम् (३) ( वृ. मा. ; व. से. । राजय . ) मधुमाया विडङ्गाश्मजतु लोहघृताभयाः । घ्नन्ति यक्ष्माणमत्युग्रं सेव्यमाना हिताशिनः ॥
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बायबिडंगका चूर्ण, शिलाजीत, लोहभस्म और हर का चूर्ण समान भाग ले कर शहद और धीमें मिला कर चाटने से उग्र राजयक्ष्मा भी नष्ट हो जाती है।
(७०३४) विडङ्गादियोगः (ग. नि. । सा. रसा. १ ) विडङ्गत्रिफला कृष्णा लोहचूर्णाज्यशर्कराः । क्षौद्राः शीलिता घ्नन्ति वार्धक्यं पलितैः सह ॥
बायबिडंग, हर्र, बहेड़ा, आमला, पीपल और लोह भस्म समान भाग ले कर यथा विधि चूर्ण बनावें ।
इसे खांड, घी और शहद के साथ सेवन करने से वृद्धता तथा पलितका नाश होता है ।
(७०३५) विडङ्गादिलौहम् (१)
( रसें. सा. सं. ; धन्व. ; र. चं. । पाण्डुरो. ) विडङ्गत्रिफलाव्योषं शुद्धलौहन्तु तत्समम् । पुरातनगुडेनात्र लेहयेद्दिन सप्तकम् ॥ श्वयथुं नाशयेच्छीघ्रं पाण्डुरोगं हलीमकम् ||
बायबिडंग, हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च और पीपल; इनका चूर्ण १ - १ भाग तथा लोहभस्म ७ भाग ले कर सबको एकत्र खरल करें ।
इसे पुराने गुड़ में मिलाकर सात दिन सेवन करनेसे शोथ, पाण्डु और हलीमकका नाश हो जाता है।
( मात्रा - ३ रत्ती | )
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