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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रसप्रकरणम् ] कर्षसम्मितं मधुप्रयोजितं प्राश्य नाशयति रक्तपित्तकम् ॥ २ ती पारद भस्म में ५ तोले बासेके कोमल पत्तों का स्वरस और १ तोला शहद मिला कर सेवन करने से रक्तपित नष्ट होता है । (७०१४) वासुकिभूषणो रसः (भैर. | प्लीहयद्रो. ) सूतेन वङ्गन्तु समं नियोज्य तत्तुल्यशुल्बेन च गन्धकेन । विमर्दयेदकरसेन यामं मृदा च संलिप्य पुटं ददीत || वासरसैस्तं परिभावयेच्च रसो भवेद्वासुकिभूष गोऽयम् । प्लीहश्च गुल्मस्य च शान्तयेऽस्य गुञ्जाञ्च दद्याद् वसुचूर्णयुक्तम् ॥ www.kobatirth.org चतुर्थो भागः शुद्र पारद, वंग भस्म, ताम्र भस्म और शुद्ध गंधक समान भाग ले कर कज्जली बनावें और उसे १ पर आके रसमें घोट कर शरावसम्पुटमें बन्द करके लघुपुटमें पकायें । तदनन्तर उसे वासे (अडूसे) के रसकी एक भावना दे कर सुखा कर सुरक्षित रक्खें । इसे ( २–३ रत्ती ) सफेद आक की जड़की छालके चूर्ण के साथ सेवन करनेसे प्लीहा और गुल्मका नाश होता है । रसगन्धरविक्षीरैस्तिथिवारान्विभावयेत् । यामद्वादशकं वह्निर्वालुकायन्त्रतो पचेत् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५५ स्वाङ्गशीतं समुद्धृत्य वज्रीक्षीरेण भावयेत् । दद्यात्सू पूर्ववदत्रं च ततश्च तिथिभावनाः ॥ भावनाः स्युश्च कम्पिल्लवीजतैलेन चानलः । यामषोडशकं सोऽयं विकरालास्यभैरवः || ( इसके सेवन से ज्वर नष्ट होता है । मात्रा - १ रत्ती । ) (७०१६) विकरालवक्त्र भैरवरसः (२) ( र. का. घे. । ज्वरा. ) ऋतुभागं सोममलं तालं दिनमितं तथा । कन्याद्भिः पञ्चदश च भावनाश्छिक्किकाद्रवैः || अश्वत्थत्वचमध्यस्थं पड्यामं दाहयेत्ततः । अरण्योपलकैः शीतमश्वगन्धाम्बुरोजितः || भावयित्वा रसैस्तत्तु तालं कुठहरं भवेत् । (७०१५) विकराल वक्त्र भैरवरस: (१) नित्योदितो रसः सोऽत्र रसं राजीमितं भवेत् ॥ ( र. का. . । ज्वरा. ) शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक समान भाग कर कज्जली बनायें और उसे १५ दिन आकके दूधमें खरल करके आतशी शीशी में भर कर १२ पहर बालुका यन्त्र में पकावें । तदनन्तर यन्त्र के स्वांग शीतल होने पर उसमेंसे औषधको निकाल कर १५ दिन थूहर ( सेंड - सेहुंड ) के दूधमें खरल करके १२ पहर बालुका यन्त्र में पकावें । इसके पश्चात् उसे १५ दिन कमीलेके बीजोंके तेलमें खरल करके पूर्ववत् १६ पहरकी अन दें और स्वांगशीतल होने पर निकाल कर रख लें । शुद्ध सोमल (संखिया) ६ भाग और शुद्ध हरताल ७ भाग ले कर दोनोंको एकत्र खरल करके घृतकुमारी और नकछिकनीके रसकी पृथक् पृथक् For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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