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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० - भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [मकारादि क्वाथ आदि जल जाए तो घृतको छानकर विधि-२ सेर गायके घ में उपरोक्त द्रव सुरक्षित रक्खें । पदार्थ और कल्क मिलाकर मंदाग्नि पर पकावें यह घृत अपस्मार, शोष, क्लीरता, कृशता ! जब द्रव पदार्थ जल जाएं तो घृतको छान लें। और विषमज्वरको नष्ट करता है। ___ यह घृत बृहण और अत्यन्त पौष्टिक है । (५२२९) महाकल्याणकं घृतम् (५) अर्दित (लकवा), कर्णशूल, भयंकर नेत्ररोग, दाह, उन्माद, अपस्मार, वातव्याधि, वातरक्त, उदावत, (र. र. । दाह.) गुल्म, हृद्रोग, मूत्रकृच्छ, मूत्रावरोध, उपदंश, भयंचतुर्गुणे शतावर्यारसे क्षीरं चतुर्गुणम् । कर संग्रहणी, अर्श (बवासीर), मन्दाग्नि, श्वास, सर्पिः प्रस्थं बलाजाजीमञ्जिष्ठापीवरीनिशा ।। विषमज्वर, हलीमक, शूल, रक्तपित्त, स्वाक्षय, खांसी, काकोल्यौ मधु मेदे द्वे ऋद्धी द्वे देवदारु च। | स्वरभंग, छर्दि, तृष्णा और प्रमेह आदिको नष्ट एषामष्टपलैः कल्कैः पचेत्कल्याणकं महत् ॥ | करता है। धृहणीयं विशेषेण परं पुष्टिकरं मतम् । ___ इनके अतिरिक्त यह घृत स्त्रीरोग, क्षय और अर्दितं कर्णशूलश्च नेत्ररोगं सुदारुणम् ॥ कामलामें विशेष गुणकारी है तथा एकदोपज, द्विदोदाहोन्मादमपस्मारं वातरुवातशोणितम् । पज और सान्निपातिक अनेक रोगोंको नष्ट उदावत गुल्मरोग हृद्रुजं मूत्रकृच्छ्रकम् ।। । करता है। (५२३०) महाकल्याणकं घृतम् (६) मूत्रबद्धोपदंशं च ग्रहणीमतिदुस्तरम् । (यो. चि. म. । अ. ५) । गुदाङ्करं मन्दमग्नि श्वासरुग्विषमज्वरौ ॥ त्रिकटु त्रिफला मुस्ता विडङ्गैला निशा द्वयम् । हलीमकं तथा शूलं रक्तपित्तस्वरक्षयम् । कासश्चैव स्वरं भिन्नं छदि तृष्णां प्रमेहकम् ।। द्वे सारिवे तृदन्त्यनन्तापद्माकवानरी ॥ स्त्रीणां रुजं जयेच्छोघ्रं क्षयरोगं सकामलम् । मञ्जिष्ठा मधुकं कुष्ठं ब्राह्मो तालीसबिल्वकम् । एकजं द्वन्द्वजं चैव तथैव सानिपातिकम् ॥ | अष्टवर्गो जीवनीयो गणः स्याचन्दनद्वयम् ।। सर्वरोग निहन्त्येतन्महत्कल्याणकं घृतम् ॥ | द्राक्षामधृकपुष्पाणि बला पर्णीचतुष्टयम् । | देवदारु सठी पाठा रेणुका जीरकद्वयम् ॥ व पदार्थ-सतावरका रस या काथ ८ | अश्वगन्धाजमोदा च कटु दाडिमपारिकम् । सेर और गायका दूध ८ सेर । | इन्द्रवारुणिका शङ्खपुष्पी च बृहती द्वयम् ।। कल्क-खरैटी, जीरा, मजीठ, सतावर, हल्दी, चातुतिं शुभोशीरं शिरीषं बालकं तथा । काकोली, क्षीरकाकोली, मुलैठी, मेदा, महामेदा, प्रियङ्ग मालती जातीपुष्पं पुष्करमूलकम् ।। ऋद्धि, वृद्धि और देवदारु सब समान भाग मिश्रित विदारी कदलीकन्दं मुशली हस्तिपर्णिका-1 १० तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें। तिविषं त्रपुषीबीजं कौन्ती मांस्येलवालुकम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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