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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ७४५ स्तम्भ, कटिग्रह और आक्षेपकादि समस्त वात प्रमेहं रक्तपित्तञ्च गुल्मं सङ्ग्रहणीं तथा ॥ व्याधियां नष्ट होती हैं। साध्यासाध्यानिहन्त्याशु सत्यं श्रीशिव( मात्रा-१-२ रत्ती।) भाषितम् । (६९९४) वातराजवटी (१) वातराजवटी ह्येषा नन्दिना परिकीर्तिता ॥ (र. रा. सु. । वातव्या. ) ____ शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, लोह भस्म, स्वर्णमुशुद्ध पारदं गन्धं लोहं माक्षिकभस्मकम् । माक्षिक भस्म, स्वर्ण भस्म, चांदी भस्म, ताम्र भस्म, स्वर्णतारं ताम्रवङ्गं कान्तं तीक्ष्णन्तु तालकम् ।। बंग भस्म; कान्त लोह भस्म, तीक्ष्ण लोह भस्म, दरदं वत्सनाभं च चातुर्जातसचित्रकम् । शुद्ध हरताल, शुद्ध हिंगुल, शुद्ध बछनाग, दालत्रिकटु त्रिफला भागी ग्रन्थिकं गजपिप्पली॥ चीनी, तेजपात, नागकेसर, इलायची, चीतामूल, कुष्ठं जातीद्वयं दारुपुष्करं चाम्लवेतसम् । | सांठ, मिर्च, पीपल, हरं, बहेड़ा, आमला, भरंगी, सठी दारुहरिद्रे द्वे पद्मकं दाडिमं त्रिवृत् ॥ पीपलामूल, गजपीपल, कूठ, जावत्री, जायफल, रास्ना दुरालभा छिन्ना दन्ती जैपालकं विषम्। देवदारु, पोखरमूल, अम्लबेत, कचूर, देवदारु, कर्षमात्राणि सर्वाणि द्विपलं गिरिज मतम् ॥ हल्दी, दारुहल्दी, पनाक, अनारदाना, निसोत, जातीफलं तुगाक्षीरी वाजिगन्धा सचव्यकम् । रास्ना, धमासा, गिलोय, दन्तीमूल, शुद्ध जमालकोलमुशीरं च द्वौ क्षारौ लवणत्रयम् ॥ गोटा और शुद्ध बछनाग १।-१। तोला तथा शुद्ध सर्व सञ्चूर्ण्य विधिवत्सुखल्वे शोभने दिने । शिलाजीत १० तोले एवं जायफल, वंसलोचन, असगन्ध, चव्य, कंकोल, खस, जवाखार, सज्जीखार, निर्गुण्डी वासकं भृङ्ग काकमाची सहाईकम् ॥ सेंधा नमक, संचल लवण और सामुद्र लवण १।तर्कारीसूरणद्रावैः ततोन्मत्तरसस्य च । भावना खलु दातव्या सप्त सप्त क्रमादिह ॥ | ११ तोला ले कर प्रथम पारे गंधककी कज्जली ततः पर्णरसैर्भाव्यः वटिका वल्लसम्मिताम् । । बनावें और फिर उसमें अन्य समस्त ओषधियोंका छायाशुष्कं ततः कृत्वा ज्ञात्वा रोगबलाबलम् ॥ बारीक चूर्ण मिला कर संभालु, बासे ( अडूसे ), भंगरे, मकोय, अदरक, अरनी, सूरण (जिमीकंद), मुदिने शुभनक्षत्रे शिवं दुगो विभाकरम् ।। प्रणम्य योजयेत्सम्यक् यथारोगानुपानतः॥ धतूरे और पानके रसकी सात सात भावना दे कर अशीतिं वातजान् रोगान् चत्वारिंशच्च पैत्ति ३-३ रत्तीकी गोलियां बना कर छायामें सुखा लें। कान्। इन्हें यथोचित अनुपानके साथ सेवन करनेविंशति श्लैष्मिकान् घोरान् श्वासं कासं से ८० प्रकारके वातज रोग, ४० प्रकारके __भगन्दरम् ॥ पित्तज रोग, २० प्रकारके कफज रोग, श्वास, कुष्ठं चोरःक्षतं शूलं ज्वरं पाण्डं गलग्रहम् । । कास, भगन्दर, कुष्ठ, उरःक्षत, शूल, ज्वर, पाण्डु, For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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