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रसमकरणम् ]
इन्हें अदरक के रसके साथ सेवन करनेसे अग्निमांद्य, अरुचि, गुल्म, अजीर्ण, जलोदर, विसूचिका, संग्रहणी और राजयक्ष्माका नाश होता है । (६९५८) वडवामुखी गुटी ( र. र. स. । उ. अ. १६) शुल्वायोघन भस्मवेल्लह लिनीव्योषाम्बुनिम्ब
चतुर्थो भाग:
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च्छदैः । संयुक्तैश्च हरिद्रया समलवैः सार्धं सशुभ्रामृतैः भृङ्गाम्भोविषतिन्दुकार्द्रकरसैः सम्पिष्य गुआ - मिता | शुष्क asana गुटिका नाम्नोदिता तारया ||
• क्षिप्रं क्षुत्परिबोधिनी खलु मता सर्वामयध्वंसिनी इष्मव्याधिविधूननी कसनहृच्छ्रवासापहा शुलनुत् ॥ क्षुद्वैषम्यहरा च गुल्मशमनी शूलार्तिमूलङ्कषा शोफव्याधिरात्र किं बहुगिरा सर्वामयो
त्सादिनी ॥
ताम्र भस्म, लोह भस्म, अभ्रक भस्म, बायबिड़ंग, कलियारीकी जड़, सोंठ, मिर्च, पीपल, सुगन्धवाला, नीमके पत्ते, हल्दी, फिटकी और शुद्ध बछनाग; इनका चर्ण समान भाग ले सबको एकत्र मिला कर भंगरे के रस, कुचलेके रस या काथ और अदरक के रसकी एक एक भावना दे कर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें ।
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इनके सेवनसे शीघ्रहृी अग्नि दीत हो जाती हैं तथा यह वटी कफ, कास, श्वास, शूल, अग्निवैषम्य, गुल्म और शोथको नष्ट करती है I
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(६९५९) वत्सनाभाद्या गुटिका (ग. नि. । गुटिका. ४ )
वत्सनाभवल्लयुगं वलषट्कं त्रिकटुकचूर्णस्य । चित्रकवल्ल द्वितयं पिप्पलीमूलस्य वल्लयुगम् ॥ अभया वल्ला द्वादश द्वादशद्विगुणा च गुग्गुलोल्लाः ।
गुटिका धार्या वदने क्षणदायां कफविनाशार्थम् ॥
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शुद्ध बछनाग २ भाग, त्रिकुटा ६ भाग, चीतामूल २ भाग, पीपलामूल २ भाग, हर्र १२ -भाग और गूगल २४ भाग ले कर गूगलमें अन्य समस्त ओषधियोंका चूर्ण मिला कर ( ४-४ रत्ती ) की गोलियां बना लें |
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इनमें से १-१ गोली मुंहमें रख कर रस चूसनेसे कफ अध्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाता है । _(६९६०) वरादादियोगः
( र. रा. सु. । ग्रहण्य. )
दग्ध्वा वराटकान् पीतान् त्र्यूषणं टङ्कणं विषम् । गन्धकं शुद्धतं च समं जम्बीरजैद्रवैः ॥ मर्दयेद्भक्षयेन्माषं मरिचाज्यं लिहेदनु । निहन्ति ग्रहणीरोगान् पथ्यं तक्रोदनं हितम् ।।
पीली कौड़ियोंकी भस्म, सांठ, मिर्च, पीपल, सुहागा, शुद्ध बछनाग, शुद्ध गन्धक और शुद्ध पारद समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धक की कजली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर सबको अम्बीरी नीबू के रस में खरल करके सुरक्षित रक्खें । मात्रा - १ रत्ती ।