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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् चतुर्थो भागः ७२५. हरैके काथमें घोट कर ५-५ रत्तीकी गोलियां (६९५०) वडवानलरसा (५) बना लें। (वै. मृ. । अजीर्णा. विष. ५; र. रा. सु. । इनमेंसे १-१ गोली अदरकके रसमें मिला अजीर्णा.) कर नित्य प्रातःकाल सेवन करनेसे कुष्ठ, मेद, तालादेको रसादेक एकः सीसकभस्मनः । आमवात, श्लीपद, गण्डमाला, गलगण्ड, भगन्दर, द्वौ भागौ गन्धकाच्छुद्धान्मरिचाच्छोडशांशकः।। नाड़ीबण, दुष्ट व्रण, दारुण अन्त्रवृद्धि, अम्लपित्त, | चूर्ण कृत्वा रक्तिकैका घृतेन सह भक्षिता । रक्तपित्त, पक्तिशूल, हलीमक, वातरक्त, वात कफ, विचिं सर्वशूलानि प्लीहानमुदरं तथा ।। उपदंश, पीनस, पांच प्रकारके गुल्म, आनाह, | गुल्म सङ्घहणीरोगं श्वासकासकफानिलान् । प्लीहा, शोथ, ज्वर, उदर रोग और कासका नाश अग्निमान्धादिकान् रोगान् हन्त्यसौ वडवानलः।। होता है। - शुद्ध हरताल, शुद्ध पारद और शीशा भस्म (६९४९) वडवानलरसः (४) १-१ भाग तथा शुद्ध गन्धक २ भाग और काली मिर्चका चूर्ण १६ भाग ले कर सबको एकत्र ( वै. र. । मेदो. ; र. स. क. । उल्लास ४) मिला कर खरल करके रक्खें । सूतं ताम्रमयो बोलं मर्दयेत्सूर्यवारिणा । मात्रा–१ रत्ती। तल्लमधुना लीदा पिबेच्च सजलं मधु ॥ इसे घीके साथ सेवन करनेसे विषूचिका, मेदुरन्तं जयेन्मासाद्रसोऽयं वडवानलः ॥ | समस्त प्रकारके शूल, प्लीहा, उदर रोग, गुल्म, रस सिन्दूर, ताम्र भस्म, लोह भस्मx और | संग्रहणी, श्वास, खांसी, कफ, वायु और अग्निमांबोल समान भाग ले कर सबको एकत्र खरल करें धादिका नाश होता है। और फिर आकके पत्तोंके रसमें घोट कर सुखा कर (६९५१) वडवानलरसः (६) सुरक्षित रक्खें। (वातनाशनरसः) मात्रा-२-३ रत्ती। ( र. र. स. । उ. अ. २१; र. र. । वातव्या.) इसे शहदके साथ चाट कर शहदका शर्बत सूतहाटकवज्रार्ककान्तभस्म समाक्षिकम् । पीना चाहिये । इसके सेवनसे १ मासमें मेदरोग तालं नीलाअनं तुत्थमब्धिफेनं समांशकम् ॥ नष्ट हो जाता है। पञ्चानां लवणानां तु भार्गक विमर्दयेत् । वज्रीक्षीरैदिनैकं तु रुध्वा तं भूधरे पुटेत् ।। ___x र. सं. क. में लोहके स्थान पर चांदी * र. रा. सु. में हरतालके स्थान पर वङ्ग लिखी है। लिखी है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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