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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ककारादि
धातकीन्द्रयवामुस्तालोधं बिल्वं गुडूचिका । (६९२८) वज्रकपाटरसः (२) एतद्रसैर्भावयित्वा वेलैकैकं च शोषयेत् ॥ (भै. रे. ; र. चं. ; रसे. सा. सं. । ग्रहण्य.) रसं वज्रकपाटाख्यं शाणैकं मधुना लिहेत् । पारदं गन्धकं चैव अहिफेनं समोचकम् । वह्नि शुण्ठी विडं बिल्वं लवणं चूर्णयेत्समम् ॥ |
" चूण्यत्समम् ।। । खल्लयेत्त शिलाखण्डे क्रमशो वक्ष्यमाणकैः ॥ पिबेहष्णाम्बुना चानु सर्वजां ग्रहणीं जयेत् ॥ त्रिकटुं फलं चैव सममेकत्र कारयेत् ।
पारद भस्म ( अभावमें रससिन्दूर ), अभ्रक | भगभृङ्गद्रवैश्चेतद्भावयेच्च पुनः पुनः ॥ भस्म, शुद्ध गन्धक, जवाखार, सुहागा, अरणी और | रक्तित्रयं ततश्चास्य मधुना सह भक्षयेत् । वच १-१ भाग ले कर सबको एकत्र खरल करके असाध्यां ग्रहणी इन्ति रसो वज्रकपाटकः ॥ ३-३ दिन जयन्ती, जम्बीरी नीबू और भांगके __शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, अफीम, मोचरस, रसमें घोट कर गोला बना और उसे सुखा कर | त्रिकुटा और त्रिफलाका चूर्ण समान भाग ले कर लोह पात्रमें रख कर उसके मुखको शरावसे ढक | प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और फिर दें और सन्धिको गुड़ चूने आदिसे मज़बूत बन्द | उसमें अन्य ओषधियां मिला कर सबको भंगरे और करके आधा पहर तक मन्दाग्नि पर पकावें । तत्प- | भांगके रसकी अनेक भावना दे कर ३-३ रत्तीकी श्चात् उसके स्वांग शीतल होने पर निकाल कर | गोलियां बनावें। उसमें उसके बराबर अतीस और उतनाही मोच- इन्हें शहद के साथ सेवन करनेसे असाध्य रसको चूर्ण मिला कर, कैथ और भांगके रसकी | ग्रहणी रोग भी नष्ट हो जाता है । सात सात भावना दें तथा धायके फूल, इन्द्रजौ,
(६९२९) वज्रधनरसः नागरमोथा, लोध, बेल और गिलोयके रसकी १-१
(र. का. धे. । उदरा.) भावना दे कर सुखा कर रक्खें ।
कण्टकारीरसैः सप्तदिनं भाव्यं तु सोमलम् । मात्रा-३॥ माशे।
एवं वारत्रयं काचकूप्यां सत्त्वं च पातयेत् ।। ( व्यवहारिक मात्रा-१ माशा । ) एतत्सत्वे पादमूतं सगन्धं कज्जलीकृतम् ।
इसे खानेके पश्चात् चीता, सेांठ, बायबिडंग, | कण्टकारीमूषिकायां शरावे पाचयेत्पुनः ॥ बेलगिरी और सेंधा नमकका समान भाग मिश्रित यामाष्टकं वज्रघनो रसः सर्वोदरातिजित् ।। चूर्ण (२ माशे) उष्ण जलके साथ पीना चाहिये। सोमल (संखिये ) को कटेलीके रसमें सात यह सर्व दोषज ग्रहणीको नष्ट करता है। दिन खरल करके कपड़मिट्टीकी हुई ओतशी शीशीमें
डाल कर ( उसका मुख बन्द करके ) बोलुका (४) भावना द्रव्योंमें मोथा, लोध और यन्त्रमें ( मन्दाग्नि पर ) पकावें। जब समझे कि गिलोयकी भावनाका अभाव है।
सोमल उड़ कर ऊपर आ गया होगा तब अग्नि
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