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स्सप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
(६९१२) वङ्गाष्टकम्
(६९१३) वङ्गेश्वररसः (१) (भै. र. । प्रमेहा.)
(र. रा. सु. । प्रमेहा.) रसं गन्धं मृतं लौहं मृतरूप्यञ्च खर्परम् ।। शुद्ध तालं शुद्धमूतं वङ्गं गन्धकशुद्धकम् । मृताभ्रकं मृतं ताम्र सर्वतुल्यश्च वङ्गकम् ॥
ग्राहयेत्समभागानि अर्कक्षीरे विमर्दयेत् ॥ पुटे लघुपुटे विद्वान् स्वागशीतं समुद्धरेत् । दिनसप्तकपयन्त मदेयेच्च निरन्तरम् । रक्तिद्वयप्रमाणेन मधुना लेहयेन्नरम् ॥
काचकुप्यां क्षिपेन्मुद्रां दत्त्वा चैव भिषग्वरः ।। निशाचूर्ण क्षौद्रयुतं पिबेद्धात्रीरसं ह्यनु ।।
द्वादशप्रहरं देयं मन्दाग्निं च न संशयः । वङ्गाष्टकमिदं ख्यातं महादेवप्रकाशितम् ॥
पुनरेव प्रकर्तव्यो विधिरेष न संशयः ।। प्रमेहान् विशति हन्ति आमदोषं विचिकाम। रसो ग्राह्यो प्रयत्नेन रक्तिका? प्रदीयते । विषमज्वरगुल्मा मूत्रातिसारपित्तजित् ॥
ताम्बूलपत्रसंयुक्तं वातव्याधि विनाशयेत् ।। वीर्यद्धिं करोत्याशु सोमरोगनिबर्हणम् ॥
| उन्मादे नष्टशुक्रे च अग्निहीने च दीयते ।
कुष्ठं व्रणं ज्वरं चैव नाशयेच्च किमदभुतम् ।। शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, लोह भस्म, चांदी भस्म, खपरिया, अभ्रक भस्म और ताम्र भस्म
शुद्ध हरताल, शुद्ध पारद, वंग भस्म और १-१ भाग तथा वंग भस्म ७ भाग ले कर प्रथम
शुद्ध गंधक समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धकपारे गंधककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य
की कज्जली बनावें और फिर सबको एकत्र मिला ओषधियां मिला कर खरल करके सबको शराव
कर सात दिन तक आकके दूधमें घोट कर कपर
मिट्टी की हुई आतशी शीशीमें भर कर उसका मुख सम्पुट में बन्द करके लघुपुटमें पकायें और फिर उसके स्वांग शीतल होने पर निकाल कर पीस कर
बन्द करके ( वालुका यन्त्रमें रख कर ) १२ पहर सुरक्षित रक्खें।
मन्दाग्नि पर पकावें । तदनन्तर उसके स्वांग शीतल
होने पर औषधको निकाल कर पीस कर पुनः मात्रा--२ रत्ती।
आकके दूधमें ७ दिन खरल करके उपरोक्त विधिसे इसे शहदमें मिला कर चाटनेके बाद (३
१२ पहर पाक करें । तत्पश्चात् औषधको निकाल माशे ) हल्दीका चर्ण शहदमें मिला कर चाटना
कर पीस कर सुरक्षित रक्खें । चाहिये और फिर आमलेका रस पीना चाहिये । मात्रा--आधी रत्ती ।
इसके सेवनसे बीस प्रकारके प्रमेह, आमदोष, इसे पानमें रख कर खानेसे वात व्याधि, विषूचिका, विषमज्वर, गुल्म, अर्श, मूत्रातिसार, पित्त । उन्माद, शुक्रहास, अग्निमांद्य, कुष्ठ, बण और और सोमरोगका नाश तथा वीर्यवृद्धि होती है। ज्वरका नाश होता है।
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