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लेपप्रकरणम्
चतुर्थों भागः और ३ मन शेष रहने पर छान कर रख दें और ५-५ तोले ले कर सबका बारीक चूर्ण कर लें। २ दिन पश्चात् उसमें ३ मन ५ सेर गुड़ मिला
आठ दिन पश्चात् आसवको छान कर उसमें कर दृढ़ मृत्पात्रमें भर कर धूपमें रख दें एवं ३
पुनः गुड़ और प्रक्षेप द्रव्योंका चूर्ण मिला कर दिन पश्चात् उसे छान कर अगर इत्यादिसे धूपित पात्रमें भर दें तथा उसमें निम्न लिखित प्रक्षेप
दूसरे पात्र में भर कर उसका मुख बन्द करके रख मिलाकर पात्रका मुख बन्द कर दें --
दें । ( एवं १ मास पश्चात् निकाल कर प्रक्षेप-शहद १ सेर तथा धायके फूल
छान लें।) १०० तोले, हर्र ४० तोले, सुपारी १०० तोले,
यह आसव राजयक्ष्मा, स्वास, आमवात, पीपल २५ तोले, इलायची, लौंग, कंकोल, जावत्री, | पाण्डु, प्लीहोदर, कृमि, गुल्म और प्रमेहको नष्ट दालचीनी, तेजपात, नागकेसर और काली मिर्च । तथा अग्निको दीप्त करता है।
इति वकाराद्यासवारिष्टप्रकरणम्
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अथ वकारादिलेपप्रकरणम्
(६८३९) वचादियोगः सबको पानीके साथ पीस कर लेप करनेसे लिङ्ग (यो. त.।त. ५४ ; वृ. मा. ; वृ. नि. र. शोथा.) अत्यन्त स्थूल हो जाता है। वचासर्षपतैलेन मलेपः शोथनाशनः । (६८४१) वटपत्रादिलेपः (१)
बचके चूर्णको सरसोंके तेलमें मिला कर लेप (रा. मा. । मुख रोगा. ५) करनेसे शोथ नष्ट होता है।
परिणतवटपत्रं स्वर्णगन्धा प्रियङ्गु(६८४०) वज्रवल्लीलेपः मधुकमथ सरोज रोधकाश्मीरलाक्षाः । ( धन्व. । वाजीकर.)
सलिलयुतमितीदं चित्रवल्लीप्रपिष्टं किमत्र चित्रं हि वज्रवल्ली
जनयति वदनानां कान्तिमत्त्वं प्रलेपात् ।। वचाश्वगन्धाजलशूकचूर्णम् ।
बड़के पके हुवे पत्ते, रेणुका, फूलप्रियंगु, हेमप्रकाशं बृहतीफलं च
मुलैठी, कमल, लोध, केसर, लाख और इन्द्रायणकी ___ क्रमेण कुर्यान्मुसलममाणम् ॥ | जड़का चूर्ण समान भाग ले कर सबको पानीके
हड़जोड़ी, बच, असगन्ध, सिरवाल और | साथ पीस कर लेप करनेसे मुख कान्तिमान हो कटेलीके पके फलोंका चूर्ण समान भाग ले कर | जाता है।
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