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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६८० ३ ॥ सेर तेलमें यह कल्क और १४ सेर पानी मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें । जब पानी जल जाय तो तेलको छान लें । भारत-2 त-भैषज्य इसकी नस्य लेनेसे कृच्छ्रसाध्य अपची (गण्डमाला भेद) का भी नाश होता है । (६८३०) व्योषाद्यं तैलम् (१) ( यो. र. | मुख रोगा. ; ग. नि. । मुख रोगा. ५) व्योषक्षाराभयावह्निचूर्णमेतत्प्रघर्षणम् । उपजिहा प्रशान्त्यर्थमेभिस्तैलं च पाचयेत् ॥ सेांठ, मिर्च, पीपल, जवाखार, हर्र और चीता समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसे मलनेसे उपजिहा रोग नष्ट हो जाता है । अथवा इन्हीं ओषधियोंसे तेल पका कर व्यवहृत करना चाहिये । तेल पकानेके लिये उपरोक्त ओषधियोंका चूर्ण ५- ५ तोले, तेल ३ सेर, पानी १२ सेर । (६८३१) व्योषाद्यं तैलम् (२) (व. से. । नासा. ) व्योषं धान्यककुसुमं गण्डीर कमवल्गुजम् । एभिस्तैलं पक्वं नासार्शो नाशनं सिद्धम् ॥ कल्क - सोंठ, मिर्च, पीपल, धनिया, लौंग, स्नुही (सेंड - सेहुंड) की जड़ और बाबची ५-५ तोले ले कर सबको एकत्र पीस लें। 1 ३॥ सेर तेलमें यह कल्क और १४ सेर पानी या इन्हीं ओषधियोंका काथ मिला कर [ वकारादि मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाय तो तेलको छान 1 यह तेल नासाको नष्ट करता है । (६८३२) व्रणराक्षसतैलम् (१) (भै. र. । व्रणा. ) - रत्नाकरः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूतकं गन्धकं तालं सिन्दूरच मनःशिला । रसोनञ्च विषं ताम्रं प्रत्येकं कर्षमाहरेत् ।। कुडवं सार्षपं तैलं साधयेत्सूर्यतापतः । नाडीव्रणञ्च विस्फोटमांसवृद्धिं विचर्चिकाम् || दडुकुष्ठापची कण्डूमण्डलानि व्रणांस्तथा । व्रणराक्षसनामेदं तैलं हन्ति गदान् बहून् ॥ कल्क — पारद, गन्धक, हरताल, सिन्दूर, मनसिल, ल्हसन, मीठा विष (बछनाग) और ताम्र चूर्ण ११ - १ | तोला ले कर पारे गन्धककी कज्जली बनावें और अन्य औषधियोंको बारीक पीस लें I ४० तोले सरसोंके तेलमें यह कल्क और २ सेर पानी मिला कर धूपमें रख दें और जब पानी सूख जाय तो तेलको छान ले 1 इसे लगाने से नाडीव्रण, विस्फोटक, मांसवृद्धि, विचर्चिका, दाद, कुष्ठ, अपची, कण्डू, मण्डल और arter नाश होता है । (६८३३) व्रणराक्षसतैलम् (२) (बृहद् ) ( भै. र. ; धन्व. । व्रग. ) कुडवं सार्षपं तैलं तदर्द्ध गोघृतस्य च । एकीकृत्य पचेत्तत्तु सूर्यावर्त्तरसेन तु ॥ चित्रपत्रप कल्कं दत्वा तत्र विपाचयेत् । daei araत्विा तु चूर्णमेषां विनिक्षिपे ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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