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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलपकरणम् ] चतुर्थों भामः ६६५ सौभाजनं काकमाची कलिहारी तु निम्बकैः। प्रकारकी सारिवा, कायफल, विदारीकन्द, स्नुही महानिम्बेश्वरी चैव दशमूली शतावरी ॥ (सेंड-सेहुंड ), आककी जड़, मेढासिंगी, दो कारेल्ली सारिवे द्वे च श्रीपर्णी च विदारिका। प्रकारके कनेरकी जड़की छाल, काकजंघा, अपामार्ग वज्रार्कमेषशृङ्गी च करवीरद्वयं तथा ॥ | (चिरचिटा ), प्रसारिणी और हरै, बहेड़ा तथा काकजङ्घा त्वपामार्ग तथा स्यात्संप्रसारिणी। आमला समान भाग मिश्रित ६। सेर ले कर सबको त्रिफला तत्समांशेन रसं तैलं समानि च ॥ एकत्र कूट कर ३२ सेर पानीमें पकावें और आठ कृष्णस्य तिलतैलं च तैलमेरण्डसार्षपम् ।। पचेदेकत्र सर्व तत्तैलं सिद्धं च बुद्धिमान् ॥ काले तिलका तेल, अरण्डका तेल और सरत्रिकदृन्यश्वगन्धा च रास्ना कुष्ठं च निम्बकम। सोंका तेल समान भाग मिश्रित २ सेर ले कर देवता लिई नदो भान उसमें उपरोक्त काथ मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें। तुत्यं कट्फलं पाठा भाी च नवसादरम् । | जब पानी जल जाए तो तेलको छान कर उसमें गन्धकं पुष्करं मूलं शिलाजतु सठी वचा ॥ निम्न लिखित ओषधियोंका बारीक चूर्ण मिला देंएतानि कर्षमात्राणि तैलशेषे विनिक्षिपेत् ।। सेठ, मिर्च, पीपल, असगन्ध, रास्ना, कूठ, प्रमृतं च विपं दद्यात मुक्ष्मचूर्ण विनिक्षिपेत ॥ नीमकी छाल, देवदारु, इन्द्रजौ, जवाखार, सजीविषगर्भमिदं तैलं सर्वव्याधीन व्यपोहति ।। खार, पांचों नमक (सेंधा, संचल, बिड नमक, कुक्षिभू षष्टिशर्केषु सन्धीनां शोफ एवं च ॥ काच लवण, सामुद्र लवण ), नीला थोथा, कायगृध्रसी च शिरोवायुः सर्वाङ्गस्फुटनं तथा । फल, पाठा, भरंगी, नौसादर, गन्धक, पोखरमूल, दण्डापतानकञ्चैव कर्णनादं च शून्यता ॥ शिलाजीत, कचूर और बच १२-१। तोला तथा कम्पनं चार्द्धवातं च बाधिर्य पलितं तथा। विष (बछनाग) १० तोले । गण्डमालापचीग्रन्थिशिरःकम्पापतन्त्रकम् ॥ ___इसकी मालिशसे सन्धियांकी सूजन, गृध्रसी, अनेन सर्ववाताश्च सन्निपातास्त्रयोदश । शिरोवायु, सर्वाङ्गस्फुटन, दण्डापतानक, कर्णनाद, वनमभ्यागते सिंहे पलायन्ते यथा मृगाः ।। शून्यता, कम्पन, अर्धांगवात, वधिरता, पलित, तथा वातेषु सर्वेषु योजनीयं भिषग्वरैः॥ गण्डमाला, अपची, ग्रन्थि, शिरका कांपना, अप तन्त्रक और सन्निपातादिका नाश होता है । क्याथ-धतूरा, संभालु, कड़वी तूंबी, पुननवा ( बिसखपरा ), अरण्डमूल, असगन्ध, पंवाड़, (६८०३) विषगर्भतैलम् (३) चीतामूल, सहजनेकी छाल, मकोय, कलियारी, | ( यो. चि. म. । अ. ६) नीमकी छाल, बकायनकी छाल, बांझ ककोड़ेकी विषं च पुष्कर कुष्ठं वचा भाी शतावरी । जड़, दशमूलकी प्रत्येक वस्तु, शतावर, करेला, दो | शुण्ठी हरिद्रे लशुनं विडङ्गं देवदारु च ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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