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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
(६७९०) वासारुद्रतैलम् (भै. र. । कुष्ठा. )
त्रिफला निम्भण्टाकी वृहत्यैौ सपुनर्नवा । हरिद्रे वृषनिर्गुण्डयौ पटोलकनकाइयौ ॥ हरितालं शिला कुष्ठौ लाङ्गलीदाडिमा हृयौ अपामार्गविषं चैव जयन्ती पूतिकट्फलौ || एषां कर्षद्वयैः कल्कैस्तैलप्रस्थं विपाचयेत् । चतुर्गुणे गुडूच्याच रसे वैद्यः समाहितः ।। चतुर्गुणन्तु गोक्षीरं वृषपत्ररसं तथा । दवावतारयेद्वै रुद्रमन्त्रं समाजपेत् ॥ कुष्टं दुष्टवणं विसर्प विद्रधिं तथा । नाडीव्रणं व्रणं घोरं वातरक्तं सुदुर्जयम् ॥ सन्निपातज्वरं चैव शिरोरोगं सुदारुणम् । शोथञ्च गलगण्डञ्च श्लीपदन्त्वर्बुदं तथा ॥ वातरोगानशेषांश्च अन्त्रवृद्धिं सुदारुणम् । पीनसश्वासकासञ्च सुदारुणभगन्दरम् ॥ उपदेशं महाघोरं चक्षु शूलश्च नाशयेत् । चर्मोत्थान् सर्वरोगांश्च तैलमेतद्विनाशयेत् ॥ रुद्रतैलमिदं नाम्ना स्वयं रुद्रेण भाषितम् ॥
कलक - - हर्र, बहेड़ा, आमला, नीमकी छाल, भण्टा ( बड़ी कटेली), छोटी और बड़ी कटेली, पुनर्नवा ( बिसखपरा ), हल्दी, दारूहल्दी, बासा (अडूसा), संभालु, पटोल, धतूरा, हरताल, मनसिल, कूठ, कलियारीकी जड़, अनारकी छाल, अपामार्ग ( चिरचिटा ), मीठा विष ( बछनाग ), जयन्ती, खट्टासी (जुन्दबेदस्तर ) और कायफल २ ॥ - २॥ तोले ले कर सबको एकत्र पीस लें । २ सेर सरसों के तेल में यह कल्क, ८ सेर
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[ वकारादि
गिलोय का रस, ८ सेर गोदुग्ध और ८ सेर बासेके पत्तों का रस मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें । जब जलांश शुष्क हो जाय तो तेलको छान लें।
यह तेल दाद, कु, दुष्ट व्रण, विसर्प, विद्रधि, नाडीव्रण, भयंकर वातरक्त, सन्निपात ज्वर, दारुण शिरोरोग, शोथ, गलगण्ड, श्लीपद, अर्बुद, समस्त वातजरोग, दारुण अन्त्रवृद्धि, पीनस, श्वास, कास, भगन्दर, भयंकर उपदंश, चक्षुशूल और समस्त चर्म रोगको नष्ट करता है ।
(६७९१) विचर्चिकारितैलम् ( भै. र. । कुष्ठा. )
जातीनिम्बार्क कुटजद्राणपुष्पाम्भसा समम् । कल्कै र्निशा विषव्योषकुपीलुककलिङ्गकैः ॥ अश्वमारशिलाताल कासीसैव सनागरैः । पचेत्कोलमितैर्वैद्यः कटुतेलशरावकम् ॥ एतत्तैलं निहन्त्याशु विचर्चीमतिदारुणाम् । नाडीव्रणञ्चोपदेशं चिरोत्थञ्च भगन्दरम् ॥
कल्क --- हल्दी, मीठा विष ( बछनाग ), सोंठ, मिर्च, पीपल, कुचला, इन्द्रजौ, कनेरकी जड़, मनसिल, हरताल, कसीस और सोंठ साढ़े सात सात माशे ले कर सबको एकत्र पीस लें 1
४० तोले सरसों के तेलमें ४०-४० तोले चमेली के पत्तों का रस, नीम के पत्तों का रस, आकका स्वरस, कुड़ेकी छालका रस और द्रोणपुष्पी ( गूमा ) का रस मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें जब जलांश शुष्क हो जाय तो तेलको छान लें 1
इसकी मालिश से अत्यन्त दुखदायी विचर्चिका
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