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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलपकरणम् ] चतुर्थो भागः ६५९ (२) ६। सेर दशमूलको २०० सेर पानीमें | लाक्षारसाढकश्चैव तथैव दधिमस्तुकम् । पकावें और ५० सेर रहने पर छान लें। चन्दनञ्चामृता भार्गी दशमूलं निदिग्धिका ॥ कल्क-मजीट, लाल चन्दन, कूठ, इला एतेषां विंशतिपलं जलद्रोणे विपाचयेत् । यची, देवदारु, भूरि छरीला, सेंधानमक, बच, - पादशेषे स्थिते काथे तैलं तेनैव माधयेत् ॥ कंकोल, पद्माक, काकड़ासिंगी, तगर, गिलोय, कासान् ज्वरान् रक्तपित्तं पाण्डुरोगं हलीमकम् । मुद्गपर्णा, मापपर्णी, शतावर, अनन्तमूल, काली कामलाश्च क्षतक्षीणं राजयक्ष्माणमेव च ॥ सारिवा, सोया और पुनर्नवा २-२ तोले ले कर श्वासान् पञ्चविधान् हन्ति बलवर्णाग्निपुष्टिकृत् । सबको एकत्र पीस लें। तैलं वासाचन्दनादि कृष्णात्रेयेण भाषितम् ॥ कल्क-सफेद चन्दन, रेणुका, खट्टाशी ४ सेर तेलमें उपरोक्त काथ और कल्क मिला ( जुन्दबेदस्तर ), असगन्ध, प्रसारणी, दालचीनी, कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब पानी जल जाय तो इलायची, तेजपात, पीपलामूल, नागकेसर, मेदा, तेलको छान लें। महामेदा, सोंठ, मिर्च, पीपल, रास्ना, मुलैठी, भूरि यह तैल स्त्री और पुरुषों के समस्त वातज | छरीला, कचूर, कूठ, देवदारु, फूलप्रियंगु और रोगोंमें हितकारी है विशेषतः शुक्रक्षीणता और बहेड़ा ५-५ तोले ले कर सबको एकत्र पीस लें । आर्तवकी हीनतामें अत्यन्त उपयोगी है। इसकी क्वाथ--(१) ६। सेर बासेको कूट कर ३२ मालिश करने और इसे पीनेसे चित्त विकृति, आक्षे- सेर पानीमें पका और ८ सेर रहने पर छान लें। पक, मर्मगत वायु, श्रम जनित गात्रकम्पन, हिक्का, (२) लाल चन्दन, गिलोय, भरंगी, दशमूल, श्वास, वात पित्तज कास, अपस्मार और महा | और कटेली २०-२० पल ( १०-१। सेर ) ले उन्माद, आदिका नाश होता है । कर सबको एकत्र कूट कर ३२ सेर पानीमें पकाचे ( मात्रा--३ से ६ माशे तक । ) । और ८ सेर शेष रहने पर छान लें। ८ सेर तिलके तैलमें उपरोक्त कल्क और ____ (६७८९) वासाचन्दनायतैलम् दोनों काथ तथा ८ सेर लाखका रस और ८ सेर . ( भै. र. । कासरो.) दहीका पानी ( दहीसे २ गुना पानी मिला कर चन्दनं रेणुका पूतिईयगन्धा प्रसारणी । बनाया हुवा तक ) मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । त्रिसुगन्धि कणामूलं नागकेशरमेव च । जब जलांश शुष्क हो जाय तो तेलको छान लें । मेदे द्वे च त्रिकटुकं रास्ना मधुकशैलजम् । ___ यह तेल कास, ज्वर, रक्तपित्त, पाण्डु, हलीशटी कुष्ठं देवदारु वनिता च विभीतकम् ॥ मक, कामला, क्षत क्षीणता, राजयक्ष्मा और श्वास में एतेषां पलिकैर्भागः पचेत्तैलाढकं भिषक् । . उपयोगी है। इसकी मालिशसे बल वर्ण और वासायाश्च पलशतं जलद्रोणे विपाचयेत् ॥ अग्निकी वृद्धि भी होती है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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