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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाकप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ६१ श्वास, अरुचि, पाण्डु, विषमज्वर, प्रमेह, वात- आमवातं निहन्त्येतत् सर्वांश्च पवनामयान् । व्याधि और बलिपलित का नाश होता तथा दुबले ज्वरांश्च विषमान् हन्ति पाण्डुरोगं सकामलम्।। मनुष्यों का शरीर पुष्ट तथा कान्तिमान् हो हन्त्युन्मादमपस्मारं प्रमेहान्वातशोणितम् । जाता है। अम्लपित्तं शिरः पीडां नासारोगं दृगामयम् ।। ___ इसके प्रभावसे नपुंसक पुरुषमें अनेक स्त्रियों- प्रदरं मूतिकारोगं हन्यादेतन संशयः । मे रमण करनेकी शक्ति आती और वन्ध्या स्त्रीको वपुषः पुष्टिकृद्धल्यं वीर्यवृद्धिकरं परम् ॥ पुत्रकी प्राप्ति होती है। मेथी और सोंठके ४०-४० तोले कपड़छन मुशलीपाकः (२) चूर्णमें १ सेर गोघृत तथा ८ सेर गोदुग्ध मिलाकर (नपुंस्काम. । त. ४ ) मन्दाग्नि पर पकावें । जब दूध गाढ़ा हो जाय तो रसप्रकरणमें देखिये । उसमें ४ सेर खांड मिलाकर पुनः पकावे और पाक तैयार हो जाने पर आगसे नीचे उतार कर उसमें काली (५२०८) मेथीपाकः (१) मिरच, पीपल, सोंठ, पीपलामूल, चीता, अजवायन, ( वृ. नि. र.; वै. र. । आमवात.) जीरा, धनिया, काला जीरा, सौंफ, जायफल, कचूर, मेथिकायाः पलान्यष्टौ शुण्ठया अष्टपलानि च । दालचीनी, तेजपात और नागरमोथे का चूर्ण ५-५ तयोचूर्ण पटे पूतं दुग्धे मृद्वग्निना पचेत् ॥ तोले तथा सोंठ और काली मिरचका चूर्ण साढ़े दुग्धाढकयुतं गव्यं घृतमष्टपलं क्षिपेत् । सात सात तोले मिलाकर चिकने पात्रमें भरकर ततावत्सुपचेद्यावद्भवेदतिघनं पयः॥ सुरक्षित रक्खें। पुनः पचेच्छनैस्तत्र दत्त्वाढकमिता सिताम् । इसे ५ तोले या अग्निवलानुसार न्यूनाधिक ततः पाके सुविज्ञाते ज्वलनादवतारयेत् ॥ मात्रामें सेवन करनेसे आमवात, समस्त वातव्याधियां, मरिचं पिप्पली शुण्ठी कणामूलं सचित्रकम् । विषमज्वर, पाण्डु, कामला, उन्माद, अपस्मार, प्रमेह, यवानी जीरको धान्यं कारवी शतपुष्पिका॥ वातरक्त, अम्लपित्त, शिरशूल, नासारोग, नेत्ररोग, जातीफलं शठी त्वक्च पत्रकं भद्रमुस्तकम् । प्रदर और सूतिका रोगोंका नाश होता तथा बल गृह्णीयात्पलमेतेषां सर्वेषां च पृथक् पृथक् ॥ वीर्यको वृद्धि होती है । इसके सेवनसे मुखमण्डल षडक्ष नागरं तत्र मरिचं च षडक्षकम् । पुष्ट हो जाता है। एषां चूर्ण परिक्षिप्य सर्वं सम्मिथ्य रक्षयेत् ॥ मेथीपाकः (२) एतत्तु भेषजं प्रोक्तं मेथिकापाकसंज्ञितम् । (नपुंसकामृतार्णव ) भक्षयेत्पलमात्रं तद्यथा चाग्निबलं तथा ॥ रसप्रकरणमें देखिये । इति मकारादिपाकमकरणम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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