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तैलप्रकरणम् ]
... चतुर्थो भागः (६७७८) वज्रकं तेलम् (३) ( महा) पचेत्तैलावशेषं च गोमूत्रेऽथ ! चतुर्गुणे । (ग. नि. । तैला २ ; वा. भ. । चि. अ. तैलावशेष पक्त्वा च तत्तैलं प्रस्थमात्रकम् ॥ १९ ; व. से.)
गन्धकाग्निशिलातालं विडङ्गातिविषा विषम् । एरण्डतायघननीपकदम्बमार्गी
तिक्तको शातकी कुष्ठं वचा मांसी कटुत्रयम् ॥ ___ कम्पिल्लवेल्लफलिनीसुरवारिणीभिः। पोतदारु च यष्टया सर्जिकाक्षारजीरकम् । निर्गुण्डयरुष्करमुराहसुवर्णदुग्धा
देवदारु च कांशं चूर्ण तैले विनिक्षिपेत् ॥ श्रीवेष्टगुग्गुलुशिलापटुतालविश्वैः ॥
वज्रतैलमिति ख्यातमभ्यङ्गात् सर्वकुष्ठनुत् ॥ तुल्यं स्नुगर्कदुग्धं सिद्धं तैलं महावज्रकाहम् ।
स्नुही ( सेंड-थूहर ) का दूध १ सेर, आकअतिशयति वज्रकगुणान् श्वित्रार्थीग्रन्थि- .
का दूध १ सेर, धतूरे और चीतेका. रस १-१
सेर, भैसके गोबरका रस १ सेर, तिलका तैल ५ मालानम् ॥
सेर और गोमूत्र २० सेर ले कर सबको एकत्र अरण्डमूल, रसौत, नागरमोथा, अशोककी
मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब तेल मात्र छाल; कदम्बकी छाल, भरंगी, कमीला, बायबिडंग,
शेष रह जाय तो छान लें। कलियारीकी जड़, इन्द्रवारुणी ( इन्द्रायण ) को
___यह तेल १ सेर ले कर उसमें गन्धक, चीता, जड़, संभाल, भिलावा, मुरामांसी, चोक ( सत्या
मनसिल, हरताल, बायबिड़ङ्ग, अतीस, बछनाग, नाशीकी जड़ ), श्रीवेष्ठ (धूप सग्ल ), गूगल,
कड़वी तूंबी, कूठ, बच, जटामांसी, सेांठ, मिर्च, मनसिल, सेंधा नमक, हरताल और सोंठ समान
पीपल, दारुहल्दी, मुलैठी, सजी, जवाखार, जीरा भाग मिश्रित १ सेर ले कर सबको एकत्र
और देवदारुका ११-१। तोला बारीक चूर्ण मिला पास लें।
कर अच्छी तरह घोट कर रक्खें । ८ सेर सरसोंके तेलमें यह कल्क, ३२ सेर
इसकी मालिशसे समस्त प्रकारके कुष्ठ नष्ट पानी और ८-८ सेर सेहुंड (थूहर) और आकका | होते हैं । दूध मिला कर मन्दाग्नि पर पकावें । जब दूध और (६७८०) वटावरोहादितैलम् पानी जल जाय तो तेलको छान लें। " ( वृ. मा. । क्षुद्र शेगा. ; यो. त. । त. ७३ )
....यह तेल श्वित्र, अर्श और गण्डमालाको नष्ट | वटावरोहकेशिन्योश्चूनादित्यपाचितम । करने में अत्यन्त प्रभावशाली है।
गुडूची स्वरसे तैलमभ्याङ्गाकेशरोहणम् ॥ ..(६७७९) वज्रीतलम् .
___बड़के अङ्कुर और जटामांसीका चूर्ण ५-५ (शा. सं. । खं २ अ. ९ ; यो. चि. म.। | ताल, तिलका तल १ सर आर गिलोयका स्वरस अ. ६. ; र. र. स. । उ. अ. २० ; र. र.)
४ सेर ले कर सबको एकत्र मिला कर धूपमें रख वनीक्षीरं रविक्षीरं द्रवं धत्तरचित्रजम् । -
दें । जब पानी सूख जाय तो तेलको छान लें। महिषीविभवं द्रावं साशं तिलतैलकम् ॥ १ र. र. स. में. गोमूत्र का अभाव है।
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