SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 636
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः अथ वकारादिघृतप्रकरणम् (६७२५) वचादिघृतम् (१) क्याथ--बच, गिलोय, कचूर, हर्र, शंख( ग. नि. । बालरोगा. ११ ; व. से. ; वा. . का पुष्पी, बायबिडंग, सोंठ और अपामार्ग (चिरचिटा) ___ भ. । उ. अ. २ ) २०-२० तोले ले कर सबको १६ सेर पानीमें | पकावें और ४ सेर शेष रहने पर छान लें। वचा द्विबृहती पाठातिविषाकटुकाधनैः। कल्क-उपरोक्त ओषधियां ११-१। तोला मरिचैश्च' घृतं सिद्धं शस्तं दशनजन्मनि ॥ ले करे सबको पानी के साथ पीस लें। काथ-बच, छोटी और बड़ी कटेली, पाठा, १ सेर घीमें उपरोक्त काथ और कल्क मिला अतीस, कुटकी, नागरमोथा और काली मिर्च २०-- कर पकावें । जब पानी जल जाए तो घीको २० तोले ले कर सबको एकत्र कूट कर १६ सेर छान लें। पानीमें पकावें और ४ सेर पानी शेष रहने पर छान लें। इसके सेवनसे वाचा शक्ति, मेधा, स्मृति और कल्यः-उपरोक्त ओषधियां ११-१। तोला अग्निकी वृद्धि होती है। ले कर पानीके साथ पीस लें। (मात्रा-१ तोला।) १ सेर घीमें उपरोक्त काथ और कल्क मिला (६७२७) वचाद्यं घृतम् (१) कर पकावें । जब पानी जल जाए तो घृतको (व. से. ; र. र. । गण्डमाला.) छान लें। वचा शठी हरिद्रे द्वे देवदारु महौषधम् । इसे सेवन करानेसे बच्चोंके दांत आसानीसे हरीतकी चातिविषा मुस्तकेन्द्रयवाः समाः ॥ निकल आते हैं और दांत निकलनेके समय होने | एतान्दशपलान्भागांश्चतुर्दोणेऽम्भसः पचेत् । वाले रोग शान्त हो जाते हैं। पादशेषे जले तस्मिन्घृतप्रस्थं विपाचयेत् ।। ( मात्रा-३ मोशे ।) कल्कं दत्त्वा पलोनमानैः क्वाथ्यद्रव्यैः सुपेषितैः। (६७२६) वचादिघृतम् (२) प्रक्षिप्य त्रिगुणं क्षौद्रं व्योषचूर्णात्पलानि षट् ॥ ( वा. भ. । उ. अ. १) यथा कालं पिबेन्मात्रां यथेष्टाहारमेव च । गण्डमालां निहन्त्याशु बहुवर्षसमुद्भवाम् ॥ वचामृताशठीपथ्याशङ्खिनीवेल्लनागरैः। कासं श्वासं प्रतिश्यायं गलगण्डं मुखामयम् ।। अपामार्गेण च घृतं साधितं पूर्ववद्गुणैः ॥ क्वाथ-चच, कचूर, हल्दी, दारुहल्दी, १ मधुरैश्चेति पाठान्तरम् । देवदारु, सेांठ, हर्र, अतीस, नागरमोथा और इन्द्रजौ For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy