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भारत-भैषज्य-रत्माकरः
[वकारादि
इसे ४ मास तक दूधके साथ सेवन करने बायबिडंगके चावलोंका चूर्ण ४ सेर, पीपलके और दूध भातका आहार करनेसे समस्त रोग नष्ट चावलोंका चूर्ण ४ सेर, मिश्री ६ सेर, घी ८ सेर, हो कर यौबनयुक्त दीर्घायु प्राप्त होती है। तेल ८ सेर, और शहद ८ सेर ले कर सबको __ (६७११) विजयावलेहः
एकत्र मिला कर घृतके पात्रमें भर कर उसका
मुख बन्द कर दें और उसे राखके ढेरमें दबा दें। ( भा. प्र. म. खं. २ । अतिसारा.) त्रैलोक्यविजयाजातीफले तुल्ये कलिङ्गकम् ।
___ यह प्रयोग प्रावट ऋतुमें बनाना चाहिये
और औषधके पात्रको वर्षाके अन्न तक राखमें रहने गृहीत्वा द्विगुणं श्रेष्ठो लेहः सर्वातिसारनुत् ॥ देना चाहिये । एवं वर्षा ऋतु बीतने पर निकालकर ___ भांग और जायफलका चूर्ण १-१ भाग सेवन करना चाहिये। तथा इन्द्रजौका चूर्ण २ भाग ले कर शहदमें मिला
___ इसके सेवनसे १०० वर्षकी जरा रहित आयु कर चाटनेसे हर प्रकारका अतिसार नष्ट होता है ।
प्राप्त होती है। ( मात्रा-१॥-२ माशे।)
(नोट-औषध पात्रको खुले स्थान पर (६७१२) विडङ्गादिलेहः राखमें दबाना चाहिये कि जहां उस पर वर्षाका
(वा. भ. । चि. अ. १८) पानी गिरता रहे ) विडङ्गाद्रिजतु क्षौद्रं सर्पिष्मत्खादिरं रजः । (६७१४) विडङ्गाद्यवलेहः (२) किटिभश्वित्रदळूनं खादेन्मितहिताशनः ।।
( वा. भ. । उ. अ. २८) ___ बायबिडंगका चूर्ण, शिलाजीत, शहद, घी और मधुतैलयुता विडङ्गसारखैरसार- (कत्था) समान भाग ले कर सबको एकत्र |
___ त्रिफलामागधिकाकणाश्च लीढाः । मिलावें।
कृमिकुष्ठभगन्दरप्रमेहइसे सेवन करने और पथ्य पालन करनेसे क्षतनाडीव्रणरोहणा भवन्ति ॥ किटिभ कुष्ठ, श्वित्र और दादका नाश होता है ।
बायबिडंगकी गिरी, हर्र, बहेड़ा, आमला (६७१३) विडङ्गाद्यवलेहः (१) और पीपलके चावल समान भाग ले कर चूर्ण
(च. सं. । चि. अ. १) बनावें और उसमें १-१ भाग शहद तथा तेल विडतण्डलचूर्णानामाढकमाढकं पिप्पली मिला ले । तण्डुलानामध्यढिकं सितोपलायाः सपिस्त- इसे चाटनेसे कृमि, कुष्ठ, भगन्दर, प्रमेह, क्षत लमध्वादकैः षभिरेकीकृतं घृतभाजनस्थं प्रा- और नाडीव्रणका नाश होता है। वृषि भस्मराशाविति सर्व समानं पूर्वेण ॥ (मात्रा-५-६ माशे । )
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