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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [धकारादि चाशनी बनाकर उसमें यह चूर्ण मिला करे साढ़े वातनाशिनी वटी सात सात माशेकी गोलियां बना लें। ( र. चि. । स्त. ९) इनमेंसे १-१ गोली सायंकालके समय खा रस प्रकरणमें देखिये । कर दूध पीना चाहिये। (६६६९) वानरी गुटिका यह गुटिका नपुंस्कता-नाशक और उत्तम वाजीकरण है। (न. मृ.। त. २; यो. र.) (६६६८) वाजीकरणगुटिका बीजानि हि कपिकच्छोःकुडव मितानि तु स्वेदयेच्छनकैः। (न. मृ.। त. ५) प्रस्थे गोभवदुग्धे दुग्धं यावद्भवेद्गाढम् ॥ करवीरस्य बीजानि बृहतीफलमेव च ।। त्वग्रहितानि च कृत्वा सूक्ष्मं सम्पेषयेत्तानि । वृद्धदारस्य बीजानि वानरीबीजमूलकम् ॥ पिष्टिकायाश्च वटिकाः कृत्वा गव्ये पचेदाज्ये ॥ एतानि समभागानि मूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् । | द्विगुणितशर्करया ता वटिकाः सपकया लेप्याः। सम्पर्य ताम्बूलरसे वटी वल्लयुगं कृतम् ॥ वटिका माक्षिकमध्ये मजनयोगेऽखिलाः स्थाएकैकं भक्षितं पुंसां नपुंसकगदापहम् । प्याः ॥ वीर्यवृद्धिकरं पुष्टं बलवाजीकरं परम् ॥ पञ्चटङ्कमितास्तास्तु पात: सायं च भक्षयेत् । ___ अर्जनके बीज, कटेलीके फल, बिधारेके बीज, अनेन शीघ्रद्रावी यो यश्च स्यात्पतितो ध्वजः॥ कौंचके बीज और कौंचकी जड़, समान भाग ले | सोपि पामोति सुरते सामर्थ्यमतिवाजिवत । कर बारीक चूर्ण बनावें और उसे पानके रसमें | नानेन सदृशं किंश्चिद्रव्यं वाजीकरं परम् ।। घोट कर ६-६ रत्तीकी गोलियां बना लें। २० तोले कौंचके बीजोंको २ सेर गोदुग्धमें इनके सेवनसे नपुंसकताका नाश और बल, | मन्दाग्नि पर पकायें; जब दूध गाढ़ा हो जाय तो वीर्य तथा पष्टिकी वृद्धि होती है। यह गुटिका | बीजोंको बारीक पीस लें। तदनन्तर उस पिट्टीकी वाजीकरण भी है। छोटी छोटी (१-१ तोलेकी) टिकिया बना कर वाजीकरो वटकः उन्हें गायके घीमें तल लें एवं उन्हें दो गुनी खांडकी चाशनीमें डाल दें ( बालूशाहीकी भांति टिकियों (र. र. रसा. ख. । उप. ६) पर चाशनी चढ़ावें) जब उन पर खांड़ अच्छी रस प्रकरणमें देखिये । तरह चढ़कर सूख जाय तो उन्हें पत्थर, कांच वाजीकरो वटकः आदिके पात्रमें शहदमें डुबा कर रक्खें । मिश्र प्रकरणमें देखिये। इनमें से २-२ टिकिया नित्य प्रति प्रातः For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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