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६१० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[धकारादि चाशनी बनाकर उसमें यह चूर्ण मिला करे साढ़े वातनाशिनी वटी सात सात माशेकी गोलियां बना लें।
( र. चि. । स्त. ९) इनमेंसे १-१ गोली सायंकालके समय खा
रस प्रकरणमें देखिये । कर दूध पीना चाहिये।
(६६६९) वानरी गुटिका यह गुटिका नपुंस्कता-नाशक और उत्तम वाजीकरण है।
(न. मृ.। त. २; यो. र.) (६६६८) वाजीकरणगुटिका
बीजानि हि कपिकच्छोःकुडव
मितानि तु स्वेदयेच्छनकैः। (न. मृ.। त. ५)
प्रस्थे गोभवदुग्धे दुग्धं यावद्भवेद्गाढम् ॥ करवीरस्य बीजानि बृहतीफलमेव च ।।
त्वग्रहितानि च कृत्वा सूक्ष्मं सम्पेषयेत्तानि । वृद्धदारस्य बीजानि वानरीबीजमूलकम् ॥ पिष्टिकायाश्च वटिकाः कृत्वा गव्ये पचेदाज्ये ॥ एतानि समभागानि मूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् । | द्विगुणितशर्करया ता वटिकाः सपकया लेप्याः। सम्पर्य ताम्बूलरसे वटी वल्लयुगं कृतम् ॥ वटिका माक्षिकमध्ये मजनयोगेऽखिलाः स्थाएकैकं भक्षितं पुंसां नपुंसकगदापहम् ।
प्याः ॥ वीर्यवृद्धिकरं पुष्टं बलवाजीकरं परम् ॥ पञ्चटङ्कमितास्तास्तु पात: सायं च भक्षयेत् ।
___ अर्जनके बीज, कटेलीके फल, बिधारेके बीज, अनेन शीघ्रद्रावी यो यश्च स्यात्पतितो ध्वजः॥ कौंचके बीज और कौंचकी जड़, समान भाग ले | सोपि पामोति सुरते सामर्थ्यमतिवाजिवत । कर बारीक चूर्ण बनावें और उसे पानके रसमें | नानेन सदृशं किंश्चिद्रव्यं वाजीकरं परम् ।। घोट कर ६-६ रत्तीकी गोलियां बना लें।
२० तोले कौंचके बीजोंको २ सेर गोदुग्धमें इनके सेवनसे नपुंसकताका नाश और बल, | मन्दाग्नि पर पकायें; जब दूध गाढ़ा हो जाय तो वीर्य तथा पष्टिकी वृद्धि होती है। यह गुटिका | बीजोंको बारीक पीस लें। तदनन्तर उस पिट्टीकी वाजीकरण भी है।
छोटी छोटी (१-१ तोलेकी) टिकिया बना कर वाजीकरो वटकः
उन्हें गायके घीमें तल लें एवं उन्हें दो गुनी खांडकी
चाशनीमें डाल दें ( बालूशाहीकी भांति टिकियों (र. र. रसा. ख. । उप. ६)
पर चाशनी चढ़ावें) जब उन पर खांड़ अच्छी रस प्रकरणमें देखिये ।
तरह चढ़कर सूख जाय तो उन्हें पत्थर, कांच वाजीकरो वटकः आदिके पात्रमें शहदमें डुबा कर रक्खें । मिश्र प्रकरणमें देखिये।
इनमें से २-२ टिकिया नित्य प्रति प्रातः
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