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चूर्णप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः (६६२३) विदार्यादिचूर्णम् (६६२५) विदार्यादियोगः (२)
(हा. सं. । स्था. ३ अ. ५० ) ( ग. नि. । वाजीकरणा. ; यो. त.। त. विदारिका गोक्षुरमूसलीनां
८० ; वृ. मा.) धात्रीफलं स्यात्सहसैन्धवानाम् । विदारीकन्दचूर्ण तु घृतेन पयसा नरः । समानि चैतानि च मागधीनां । | उदुम्बरसमं खादन्टद्धोऽपि तरुणायते ॥ _युक्तं सिताढयं पयसा पिबेच्च ।। विदारी कन्दके चूर्णको धीमें मिला कर दूधके
विदारीकन्द, गोखरु, मूसली, आमला, सेंधा- साथ सेवन करनेसे वृद्ध पुरुष भी तरुणके समान नमक और पीपल समान भाग तथा खांड सबके हो जाता है। बराबर ले कर चूर्ण बनावें ।
मात्रा--१॥ तोला । इसे दूधके साथ सेवन करनेसे वीर्य वृद्धि
(६६२६) विशालादिचूर्णम् (१) होती है। ( मात्रा-९ माशे ।)
( यो. र. ; व. से. | उदरा.) (६६२४) विदार्यादियोगः (१) ।
विशालाशङ्खिनीदन्तीत्रिन्नीलीफलत्रयम् ।
निशा विडङ्ग कम्पिल्लं मूत्रेणोदरवान्पिबेत् ॥ (ग. नि. । वाजीकरणा.)
इन्द्रायणकी जड़, शंखाहोली, दन्तीमूल, चूर्ण विदार्या बहुशः स्वरसेनैव भावितम् ।
निसोत, नील, हर्र, बहेड़ा, आमला, हल्दी, बायकृष्णाधात्रीफलरजो द्राक्षामधुकसंयुतम् ॥
.. बिडंग और कमीला समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । शर्करामधुसर्पिा लीढ्वा योऽनु पयः पिबेत् । स नरोऽशीति वर्षोऽपि युवेव परिहृष्यति ॥
| इसे गोमूत्रके साथ पीनेसे उदर रोग नष्ट पीपल, आमला, मुनक्का और मुलैठी समान |
होता है। भाग ले कर चूर्ण बनावें और उसे बिदारीकन्दके |
(मात्रा-२-३ माशे । ) रसकी बहुतसी भावनाएं दे कर सुखा लें। तद (६६२७) विशालादिचूर्णम् (२) नन्तर उसमें उसके बराबर मिश्री मिला कर (वा. भ. । चि. अ. १६ ; च. द. । पाण्डु. ८; रक्खें।
ग. नि. । पाण्डु. ७) इसे शहद और धीके साथ चाटकर दूध विशालां कटुकां मुस्तां कुष्ठं दारुकलिङ्गकः । पीना चाहिये।
कर्षांशा द्विपिचुवा कांद्धांशा घुणप्रिया ॥ इसके सेवनसे ८० वर्षको वृद्ध पुरुष भी पीत्वा तच्चूर्णमम्भोभिः सुखैलियात्ततो मधु । तरुणके समान स्त्रीसमागममें समर्थ हो जाता है। पाण्डुरोगं ज्वरं दाहं कासं श्वासमरोचकम् ॥ ( मात्रा–६ माशे ।)
गुल्मानाहामवातांश्च रक्तपित्तं च तज्जयेत् ॥
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