SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 581
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ भारत-भैषज्य रत्नाकरः [वकारादि काला नमक, बिड नमक और पोखरमूलका चूर्ण | (६५४५) वीरता दिक्वाथ: मिला कर पीनेसे हृदय और पसलीका शूल कटी. ( शा. सं. । खं. २ अ. २ ; वृ. नि. र. । ग्रह, आमाशय शूल, पक्वाशय शूल, ज्वर और मूत्रा ; यो. र.) गुल्मका नाश होता है। वीरतरुक्षवृन्दा कासः सहचरत्रयम् । (६५४३) विश्वादिद्वादशाङ्गक्वाथः कुशद्वयं नलो गुन्द्रा बकपुष्पोऽग्निमन्थकः ॥ ... (ग. नि. । वाता. १९ ) मूर्वापाषाणभेदश्च श्योनाको गोक्षुरस्तथा । विश्वैरण्ड शिफादारुवचाः शुण्ठी दुरालभा अपामार्गश्च कमलं ब्राह्मी चेति गणो वरः ॥ अभयाऽतिविषा मुस्ता शतमूली वृषोऽमृता। वीरतर्वादिरित्युक्तः शर्कराश्मरीकृच्छ्रहा। अमीषां क्याथपानेन मांसोमश्लेषसन्धिगः मूत्राघातं वायुरोगानाशयेन्निखिलानपि ॥ मज्जास्थिस्नायुसर्वाङ्गवायुर्नश्यति निश्चितम् ॥ अर्जुन वृक्षकी छाल, तुलसी, कांसकी जड़, सेठ, अरण्डमूल, देवदारु, बच, सोंठ, धमासा, | सफेद, पीले और नीले फूलका पियाबांसा, दो हर्र, अतीस, नागरमोथा, शतावर, बासा और | प्रकारकी कुश, नल, दाभ, अगस्ति पुष्प, अरनी, गिलोय समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।। | मूर्वा, पाषाणभेद, अरलुकी छाल, गोखरु, चिरचिटे यह क्वाथ मांसगत, 'सन्धिगत, मज्जागत, | (अपामार्ग) की जड़, कमल और ब्राह्मी समान अस्थिगत, स्नायुगत और सर्वाङ्गगत वायुको नष्टः | भाग ले कर क्वाथ बनावें । करता है। ___यह क्वाथ शर्करा, अश्मरी, मूत्रकृच्छ, मूत्रा(६५४४) विष्णुप्रियादिक्वाथ: घात और समस्त वायु रोगोंको नष्ट करता है । (ग. नि. । कृम्य. ६) (६५४६) वृषादिक्वाथः (१) विष्णुप्रियारात्रिफणिज्जकार्क (वैद्यामृत ) . कुठेरकासारिकसिन्दुवारैः। वृषदारुनिशाकिरातभल्ली कृतः कषायः क्रिमिनाशनाय । - रसजाम्भोधरबिल्वजः कषायः । पलाशबीजप्रतिवापयोगात् ।। मधुना मधुरी कृतो निहन्ति तुलसी, हल्दी, फणिज्जक ( तुलसी भेद- विविधानि प्रदराणि कामिनीनाम् ॥ मरवा ), आककी जड़की छाल, कुठेरक (बन बासो, देवदारु, हल्दी, चिरायता, भिलावा, तुलसी), कासारि ( कसौंदी) और संभालु समान रसौत, नागरमोथा और बेलगिरी समान भाग ले भाग ले कर क्वाथ बनावें । कर क्वाथ बनावें । . इसमें ढाकके बीजोंका चूर्ण मिला कर पीनेसे इसे शहदसे मीठा करके पीनेसे स्त्रियोंका कृमि नष्ट हो जाते हैं। | अनेक प्रकारका प्रदर रोग नष्ट होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy