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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वकारादि
. वासा [अडूसा), बायबिडंग, नीमकी छाल, _ (६५२३) विडङ्गादिक्वाथः (२) पटोल, पाठा, सेांठ, देवदारु, दशमूल और हर्रका ( भै. र. । अर्शा.) काथ वातज कुष्ठको नष्ट करता है ।
विडङ्गपत्रकेशरशुण्ठीसमैला (६५२१) वासादिक्वाथः (५) । कुस्तुम्बुरुधान्यकतिलानाम् । (ग. नि. । श्वयथु. ३३ ; र. र. । अम्लपित्ता.) क्याथो हरीतकीसर्पिर्गुडेन सिंहास्यामृतभण्टाकीक्वार्थ
पीतो निहन्ति गुदे गुदजानि ॥ पीत्वा समाक्षिकम् ।
बायबिडंग, तेजपात, नागकेसर, सोंठ, इलाकृच्छ्रशोथं जयेज्जन्तुः
यची, नेपाली धनिया, धनिया और तिल समान कासं श्वासं ज्वरं वमिम् ॥
भाग ले कर क्वाथ बनावें । बासा (अडूसा), गिलोय और बड़ी कटेली |
इसमें हर्रका चूर्ण, गुड़ और घी मिला कर समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
पीनेसे अर्शका नाश होता है । इसमें शहद मिला कर पीनेसे मूत्रकृच्छ,
। (६५२४) विडङ्गादिक्वाथः (३) शोथ, खांसी, श्वास, ज्वर और वमनका नाश
( वृ. नि. र. । अतिसारा. ; व. से. ; वृ. मा.) होता है।
विडङ्गातिविषामुस्ता दारुपाठाकलिङ्गकम् । वासादिक्वाथः (६) (महा)
मरीचेन समायुक्तं शोथातीसारनाशनम् ॥ (यो. त. । त. ७१)
बायबिडंग, अतीस, नागरमोथा, देवदारु, प्र. सं. ५०१३ “ महा वासादि काथः"
पाठा. इन्द्रजौ और काली मिर्च समान भाग ले कर देखिये।
क्वाथ बनावें। (६५२२) विडङ्गादिक्वाथः (१)
यह क्वाथ शोथातिसारको नष्ट करता है। (मै. र. । प्रमेहा. ; हा. सं. । स्था. ३ अ. ३१)
। (६५२५) विडङ्गादिक्वाथः (४) विडङ्गसर्जार्जुनकटफलानां
__(यो. र. । प्रमे.) कदम्बरोधासनवृक्षकाणाम् ।
| विडारजनीयष्टीनागरगोक्षुरैः कृतः । जलेन क्वाथश्च हितो नराणां कफप्रमेहेण सदातुराणाम् ॥
| कषायो मधुना हन्ति प्रमेहान्दुस्तरानपि ॥ बायबिडंग, शालवृक्षकी छाल, अर्जुनकी | । बायबिडंग, हल्दी, मुलैठी, सेांठ और गोखरु छाल, कायफल, कदम्ब, लोध और असनावृक्षकी समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । छाल समान भाग ले कर क्वाथ बनावें।
इसमें शहद मिला कर पीनेसे भयंकर प्रमेह यह काथ कफज प्रमेहको नष्ट करता है। भी नष्ट हो जाते हैं।
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