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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि (६४९७) वरुणादिक्वाथः (४) लाल चन्दन, पुन्नाग ( सुल्तानचम्पा ), (व से. । अश्मरी. ) पद्माक, खस, मुलैठी, मजीठ, सारिवा, क्षीरकावरुणकभस्मपरिश्रुतसलिलं तच्चूर्ण यावशूक- कोली, सफेद दूर्वा और नील दूर्वा; ये दश ओष युतम् ।। धियां वर्ण्य हैं। क्वथनीयं तत्तावद्यावच्चूर्णत्वमायाति ॥ (६५००) वर्ड मानपिप्पलीयोगः तद्गुडयुक्तं हन्यात्तदुदारामश्मरी घोराम्। (भै. र. । प्लीह. : च. द.। प्लीहा. ३८ : ग. वह्निसदनं सुकष्टमश्ममयीमश्मरी चाशु॥ नि. । सा. रसा. १ ; यो. चि. म. । अ. ७) ____बरनेकी छालकी .राखको पानीमें घोल कर कई बार छान कर स्वच्छ पानी निकालें । ( जिस प्र. सं. ३८२८ " पिप्पली वर्द्धमानम् " प्रकार क्षार बनानेके लिये पानी तैयार करते हैं ) | देखिये । तदनन्तर उसमें बरनेकी छालका चूर्ण और जवा- (६५०१) वर्षाभ्वादिक्वाथः खार मिला कर पुनः पकावें । जब शुष्क चूर्ण हो | (वृ. नि. र. 1 अन्तर्विद्रधि. ) जाय तो निकाल लें। इसे गुड़में मिलाकर सेवन करनेसे घोरतर, | वर्षाभूवरुणामिभ्यां क्वाथो विद्रधिनाशनः । पत्थरके समान कठिन और पीडादायक अश्मरी | पुनर्नवा और बरनेकी जड़का काथ विद्रतथा अग्निमांद्यका नाश होता है । धिको नष्ट करता है। (६४९८) वरुणादिस्वेदः (६५०२) वासकादिकषायः (१) ( ग. नि. । वाता. २०) (व. से. ; च. द. ; भै. र. । नेत्र रोगा. ; वृ. वरुणैरण्डवातारिमुण्डयः शिग्रुः शतावरी। यो. त.।त. १३१ ; यो. त. । त. ७१) गोक्षुरः सर्षपश्चैषां स्वेदो वातगदापहः ॥ आटरूषाभयानिम्बधात्रीमुस्ताक्षकूलकैः । ___ बरनेकी छाल, दोनों प्रकारके अरण्डकी छाल, मुण्डी, सहजनेकी छाल, शतावर, गोखरु और रक्तस्रावं कर्फ हन्ति चक्षुष्यं वासकादिकम् ॥ सरसों; इनके क्वाथकी भाप लेनेसे वातव्याधि नष्ट ___ बासा, हरे, नीमको छाल, आमला, नागरहोती है। मोथा, बहेड़ा और पटोलपत्र समान भाग ले कर (६४९९) वर्ण्यकषायदशकः | काथ बनावें। (च. सं. । सू. अ. ४) इसके सेवनसे नेत्रोंसे होने वाला रक्तस्राव चन्दनतुङ्गपद्मकोशीरमधुकमभिष्ठासारिवापयस्या- और कफ नष्ट होता है । यह क्वाथ नेत्रोंके लिये सितालता इति दशेमानि वर्ष्यानि भवन्ति । । विशेष हितकारी है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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