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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वकारादि
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यह काथ ज्वरातिसारको अति शीघ्र नष्ट त्रिफला, जीरा, बड़ी कटेली, हल्दी, बांस कर देता है।
| और अडूसेका काथ शहद मिला कर पीनेसे रक्त. सांठ, गिलोय, इन्द्रजौ और नागरमोथेका दोषज भयंकर ज्वर नष्ट होता है । काथ भी ज्वरातिसारको नष्ट करता है ।
(६४८९) वरुणमूलक्वाथ (६४८६) वमनोपगकषायदशकः । ( ग. नि. । ग्रन्थ्य. ; व. से. । गण्डमाला.) । (च. सं. । सू. अ. ४ )
| मधुनाऽऽढयोऽसकृत्पीतः क्वाथो वरुणमूलजः। मधुमधुककोविदारकर्बुदारनीपविदुलविम्बी- | गण्डमालां निहन्त्याशु चिरकालानुबन्धिनीम् ॥ शणपुष्पी दापुष्पी प्रत्यक्पुष्पा इति दशेमानि | बरनेकी जड़के काथमें शहद मिला कर वमनोपगानि भवन्ति ।
पीनेसे पुरानी गण्डमाला भी शीघ्र ही नष्ट हो शहद, मुलैठी. लाल कचनार, सफेद कचनार, | जाती है। कदम्ब, जलवेतस, कन्दूरी, सणपुष्पी, आक और
___ (६४९०) वरुणादिकषायः (१) अपामार्ग । ये दश ओषधियां वमनोपयोगी हैं।
(भै. र. । अश्मर्य. ; वृ. मा. ; ग. नि. । (६४८७) वयःस्थापनकषायदशकः
अश्मर्य. २९; च. द. । अश्मय. ३३ ; व. से.) (च. सं. । सू. अ. ४)
वरुणत्वकशिलाभेदशुण्ठीगोक्षुरकैः कृतः। अमृताभयाधात्रीयुक्ताश्रेयसी
कषायः क्षारसंयुक्तः शर्कराश्च भिनत्यपि ॥ जीवन्त्यतिरसामण्डूकपर्णी
बरनेकी छाल, पाषाण भेद, सोंठ और गोखरु स्थिरा पुनर्नवा इति दशेमानि
समान भाग ले कर क्वाथ बनावें। वयःस्थापनानि भवन्ति ॥
इसमें जवाखार मिला कर पीनेसे अश्मरी और गिलोय, हर्र, आमला, रास्ना, श्रेयसी (रास्ना |
शर्कराका नाश होता है। भेद), जीवन्ती, शतावर, मण्डूकपर्णी, शालपर्णी, और पुनर्नवा; ये दश ओषधियां वयःस्थापक हैं । (६४९१) वरुणादिकषायः (२)
(६४८८) वरादिक्वाथ: ( ग. नि. । अश्मर्य. २९; वृ. यो. त. । त. ( वृ. नि. र. । जीर्ण ज्वरा.)
१०२; ; वृ. मा. ; वै. र. ; च. द. । वराप्यजाजीहती हरिद्रा
अश्मय. ३३ ; यो. र. ; व. से.) घेण्वाटरूपप्रभवः कषायः। वरुणस्य त्वचं श्रेष्ठां शुण्ठीगोक्षुरसंयुताम् । जहासि दूरं मधुना विमिश्रितो यवक्षारगुडं दत्त्वा क्याथं कृत्वा पिबेद्धितम् ॥
रक्तोद्भवं दारुणजूतिवेगम् ॥ अश्मरीं वातजां हन्ति चिरकालानुबन्धिनीम् ॥
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