________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मिश्रप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
घीमें भुने हुवे लोधके चूर्णको पानीमें पीस | मिला कर छानकर उसकी बूंदें आंखोंमें टपकावें । कर कपड़ेसे उसका रस निचोड़ कर आंख में डालने- इससे पित्तज, वातज और रक्तज नेत्राभिष्यन्द नष्ट से रक्तज नेत्राभिष्यन्द नष्ट होता है। होता है। इसी प्रकार खांड और त्रिफलाका पानी डाल
। (६४६१) लोध्राद्याइच्योतनम् (२) नेसे भी रक्तज नेत्राभिष्यन्द नष्ट होता है ।
(वं. से. ; वृ. मा. । नेत्र रोगा.) (६४५९) लोध्रादिसेकः (२) ( ग. नि. । नेत्र रोगा. ३)
लोधं सपिपि सम्पक्वं खदिराजाजिसर्षपैः । तिरीटत्रिफलायष्टिशर्कराभद्रमुस्त।
नागरारिष्टसिन्धूत्थैर्युक्तं दृषदि चूर्णितम् ॥ पिष्टः शीताम्बुना सेको रक्ताभिष्यन्दनाशनः ॥ !
सिते वाससि तद्वद्धं न्यसेत्स्वच्छाम्लकाधिके । लोध, त्रिफला, मुलैठी, खांड और नागर- तेनाक्ष्णोः पूरणं कार्य कण्डूरोगाश्रुघर्ष जित् ॥ मोथा समान भाग ले कर सबको एकत्र पानीमें ___घीमें पकाया हुवा लोध, खैरसार (कत्था), पीस कर कपड़े बांध कर उसका रस निचोड़ें। । जीरा, सरसों, सोंठ, नीमके पत्ते और सेंधा नमक इसे आंख में डालनेसे रक्तज नेत्राभिष्यन्द
समान भाग लेकर सबको पत्थरपर एकत्र पीस लें।
तदनन्तर उसे सफेद कपड़ेमें बांध कर पोटली नष्ट होता है।
बनावें । इसे स्वच्छ काञ्जीमें भिगो कर आंखोंमें (६४६०) लोध्राद्याश्च्योतनम् (१) । निचोड़नेसे कण्डु (खाज), अश्रु और आंखेांकी (च. द; यो. र. ; वं. से. । नेत्र. ) किरकराहट नष्ट होती है। निम्बस्य पत्रैः परिलिप्य लोभ्रं
(६४६२) लोमनाशनयोगः स्वेद्याग्निना चूर्णमथापि कल्कम् । ( ग. नि. । अधि. १०) आश्च्योतनं मानुषदुग्धयुक्तं ।
उत्पाटय योनिप्रभवाणि रोमापित्तास्रवातापहमय्यमुक्तम् ॥
ण्यभ्यञ्जनं तत्र ततो विधेयम् । लोधको नीमके पत्तोंकी लुगदी (कल्क ) के
कोशातकीबीज समुद्भवेन बीचमें रख कर उस पर कपड़ा लपेट कर उसके ऊपर मिट्टीका लेप कर दें । इस गोलेको कण्डेकी
तैलेन रोम्गामपुनर्भवाय ॥ मन्दाग्निमें दबा दें, जब ऊपरकी मिट्टीका रंग लाल योनिके बालेको उखाड़ कर उस जगह हो जाय तो उसके भीतरसे लोधको निकाल कर | कड़वी तोरीके बीजोंका तेल मलनेसे पुनः बाल पानीके साथ या सूखाही पीस कर स्त्रीके दुग्धमें । नहीं निकलते ।
७
For Private And Personal Use Only