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पत्र जातीफलैला समरिचकर हाटाजमोदाहि
फेनम् सामुद्रं सिन्धुशोषावपि घृतमधुना मर्दयित्वाऽस्य टङ्क खादेदनेऽतिजीर्णे नियतमिह रतौ स्तम्भन रेतसः स्यात् ॥
लोह भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक भस्म, पारद भस्म, लौंग, सुगन्धवाला, कपूर, जावित्री, तेजपात, जायफल, छोटी इलायची, काली मिर्च, करहाट (अकरकरा), अजमोद, अफीम, समन्दर झाग, और समन्दर सोख समान भाग ले कर यथा विधि चूर्ण बनावें ।
भारत-भ - भैषज्य रत्नाकरः
इसे घी और शहद के साथ मिला कर ४ माशे की मात्रानुसार सेवन करनेसे स्त्रीसमागमके समय वीर्यस्तम्भन होता है ।
व्यवहारिक मात्रा - १ माशा । (६४३९) लोहाद्यो मोदकः (ग. नि. । पाण्डु ७ ) अयस्तिलत्र्यूषणको भागैः
सर्वैः समं माक्षिकधातुचूर्णम् । तैर्मोदकः क्षौद्रयुतोऽनुत पाण्यामये दूरगतेऽपि शस्तः || लोह भस्म, तिल, सोंठ, मिर्च और पीपल, ११- १1 तोला और स्वर्णमाक्षिक भस्म सबके बराबर ले कर, यथा विधि चूर्ण बना कर उसे शहद में मिला कर गोलियां बना लें ।
इन्हें तकके साथ सेवन करनेसे पाण्डुका नाश होता है।
( मात्रा - २ - ३ रती )
लकारादि
(६४४०) लोहाद्यो रसायनः ( रा. मा. । रसायना ३३ ) लोहा सूतक शिलाजतुकान्तलोहचक्राङ्गचूर्णसहितं विषचूर्णमत्ति । यः सन्ततं घृतमधूपहितं मनुष्यः स स्याज्जरामरणरोगभयैर्विमुक्तः ॥
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तीक्ष्ण लोह भस्म, अभ्रक भस्म, पारद भस्म, शिलाजीत, कान्त लोह भस्म, चक्राङ्ग (सुदर्शन) का चूर्ण एवं शुद्ध. बछनाग समान भाग ले कर एकत्र खरल करें ।
इसे घी और शहद के साथ सेवन करते रहने से जरा व्याधिका नाश होता है ।
(६४४१) लोहामृतम् ( १ ) ( र. र. | पाण्डुवा. ) मुस्तामृताकणायष्टिर्वह्निशुण्ठी फलत्रयम् । विडङ्गं च समं चूर्णं सर्वांशं मृत लोहकम् ॥ मधुना भक्षयेनिष्कं पाण्डुरोगहरं परम् । अयं लोहामृतं नाम स्वयमनि रसोपि वा ।।
नागरमोथा, गिलोय, पीपल, मुलैठी, चीता, सोंठ, त्रिफला और बायबिडंगका चूर्ण १-१ भाग एवं लोह भस्म सबके बराबर ले कर सबको एकत्र खरल करके रखें ।
मात्रा - १ निष्क ।
व्यवहारिक मात्रा - ३-४ रत्ती । इसे शहदके साथ सेवन करनेसे पाण्डु रोग
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