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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारतत- भैषज्य - रत्नाकरः ५४४ रुध्वा गजपुटैः पच्यात्कषायैस्त्रफलैः पुनः । जम्बीरैरनालैश्च विंशत्यंशेन हिङ्गुलम् ॥ पिष्ट्वा रुध्वा पचेल्लोहं तद्द्रवैः पाचयेत्पुनः । चत्वारिंशत्पुटैरेवं कान्तं ताक्ष्णं च मुण्डकम् + ॥ म्रियते नात्र सन्देहो दत्वा दत्यैव हिङ्गुलम् || २५ तोले हिंगुलको स्त्रीके दूधमें घोट कर २५ तोले शुद्ध लोह पत्रों पर उसका लेप कर दें और उन्हें शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें पकावें । तदनन्तर पुटके स्वांगशीतल होने पर उसमें से लोहको निकाल कर कूट लें और फिर उसमें १| तोला हिंगुल मिला कर त्रिफलाके काथमें घोटें और यथा विधि शरावसम्पुट में बन्द करके गजपुटकी अनि दें । इसी प्रकार हर बार १| तोला +लाहलक्ष्णानि ( आवे. प्र. । अ. ११ ) मुण्डकटाहपात्रादि जायते तीक्ष्णलोहतः । खङ्गादि शस्त्रभेदाः स्युः, कान्तलोहं तु दुर्लभम् ॥ मुण्डाच्छतगुणं तीक्ष्णं तीक्ष्णात्कान्तं शताधिकम् तस्मान्मुण्डं परित्यज्य तीक्ष्णं वा कान्तमुत्तमम्॥ कासीसामलकल्काक्ते लोहेऽङ्गं दृश्यते स्फुटम् । तीक्ष्णं लाहं तदुद्दिष्टं मारणायोत्तमं विदुः ॥ मुण्ड लोहसे कढ़ाई पात्रादि बनते हैं; तीक्ष्ण लोहसे तलवार इत्यादि शस्त्र बनाये जाते हैं और कान्त लोह मिलना दुर्लभ है । मुण्ड लोहसे सौ गुना गुणकारी तीक्ष्ण लोह और तीक्ष्णसे १०० गुना कान्त लोह होता है, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ लकारावि हिंगुल मिलाकर और त्रिफला के काथमें घोट कर १३ पुट दें । तदनन्तर १३ पुट जम्बीरीके रसमें घोट कर और फिर १३ पुट आरनाल में घोट कर दें। हर बार १ तोला हिंगुल मिला लेना चाहिये । इस प्रकार कुल ४० पुट देनेसे कान्त लोह, तीक्ष्ण लोह और मुण्ड लोहकी भस्म हो जाती है । अतएव मुण्ड लोहको छोड़ कर औषधोंमें तीक्ष्ण या कान्त लोहही प्रयुक्त करना चाहिये । यदि लोहेपर कसीस और आमलेके कल्कका लेप करनेसे उसमें मुख दीखने लगे तो उसे भस्म करने योग्य उत्तम कान्त लोह समझना चाहिये । कान्त लोह लक्ष्णम् ( यो. र. ) यत्पात्रस्थः प्रसरति जले तैलविन्दुर्न दसो हिर्गन्धं विसृजति निजं तिक्ततां निम्बकल्कः । पाचयं दुग्धं भवति शिखराकारकं नैति भूमिं दग्धाङ्गाः स्युः सजलचणकाः कान्तलोहं तदुक्तम् ॥ कान्त लोहके पात्र में पानी भर कर उसमें तेलकी बूंद डालनेसे वह फैलती नहीं; तथा उसमें हींग रख देनेसे उसकी गन्ध नष्ट हो जाती है और नीम के पत्तों के कल्कका लेप करनेसे उसकी कड़वाट चली जाती है। For Private And Personal Use Only कान्त लोहके पात्र में दूध पकाने से वह शिखराकार ऊंचा हो जाता है परन्तु बाहर नहीं निकलता । एवं भीगे हुवे चने रखनेसे वे जले हुवेसे हो जाते हैं ।
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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