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भारतत- भैषज्य - रत्नाकरः
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रुध्वा गजपुटैः पच्यात्कषायैस्त्रफलैः पुनः । जम्बीरैरनालैश्च विंशत्यंशेन हिङ्गुलम् ॥ पिष्ट्वा रुध्वा पचेल्लोहं तद्द्रवैः पाचयेत्पुनः । चत्वारिंशत्पुटैरेवं कान्तं ताक्ष्णं च मुण्डकम् + ॥ म्रियते नात्र सन्देहो दत्वा दत्यैव हिङ्गुलम् ||
२५ तोले हिंगुलको स्त्रीके दूधमें घोट कर २५ तोले शुद्ध लोह पत्रों पर उसका लेप कर दें और उन्हें शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें पकावें ।
तदनन्तर पुटके स्वांगशीतल होने पर उसमें से लोहको निकाल कर कूट लें और फिर उसमें १| तोला हिंगुल मिला कर त्रिफलाके काथमें घोटें और यथा विधि शरावसम्पुट में बन्द करके गजपुटकी अनि दें । इसी प्रकार हर बार १| तोला
+लाहलक्ष्णानि
( आवे. प्र. । अ. ११ ) मुण्डकटाहपात्रादि जायते तीक्ष्णलोहतः । खङ्गादि शस्त्रभेदाः स्युः, कान्तलोहं तु दुर्लभम् ॥ मुण्डाच्छतगुणं तीक्ष्णं तीक्ष्णात्कान्तं शताधिकम् तस्मान्मुण्डं परित्यज्य तीक्ष्णं वा कान्तमुत्तमम्॥ कासीसामलकल्काक्ते लोहेऽङ्गं दृश्यते स्फुटम् । तीक्ष्णं लाहं तदुद्दिष्टं मारणायोत्तमं विदुः ॥
मुण्ड लोहसे कढ़ाई पात्रादि बनते हैं; तीक्ष्ण लोहसे तलवार इत्यादि शस्त्र बनाये जाते हैं और कान्त लोह मिलना दुर्लभ है ।
मुण्ड लोहसे सौ गुना गुणकारी तीक्ष्ण लोह और तीक्ष्णसे १०० गुना कान्त लोह होता है,
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[ लकारावि
हिंगुल मिलाकर और त्रिफला के काथमें घोट कर १३ पुट दें । तदनन्तर १३ पुट जम्बीरीके रसमें घोट कर और फिर १३ पुट आरनाल में घोट कर दें। हर बार १ तोला हिंगुल मिला लेना चाहिये । इस प्रकार कुल ४० पुट देनेसे कान्त लोह, तीक्ष्ण लोह और मुण्ड लोहकी भस्म हो जाती है ।
अतएव मुण्ड लोहको छोड़ कर औषधोंमें तीक्ष्ण या कान्त लोहही प्रयुक्त करना चाहिये ।
यदि लोहेपर कसीस और आमलेके कल्कका लेप करनेसे उसमें मुख दीखने लगे तो उसे भस्म करने योग्य उत्तम कान्त लोह समझना चाहिये ।
कान्त लोह लक्ष्णम् ( यो. र. )
यत्पात्रस्थः प्रसरति जले तैलविन्दुर्न दसो हिर्गन्धं विसृजति निजं तिक्ततां निम्बकल्कः । पाचयं दुग्धं भवति शिखराकारकं नैति भूमिं दग्धाङ्गाः स्युः सजलचणकाः कान्तलोहं तदुक्तम् ॥ कान्त लोहके पात्र में पानी भर कर उसमें तेलकी बूंद डालनेसे वह फैलती नहीं; तथा उसमें हींग रख देनेसे उसकी गन्ध नष्ट हो जाती है और नीम के पत्तों के कल्कका लेप करनेसे उसकी कड़वाट चली जाती है।
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कान्त लोहके पात्र में दूध पकाने से वह शिखराकार ऊंचा हो जाता है परन्तु बाहर नहीं निकलता । एवं भीगे हुवे चने रखनेसे वे जले हुवेसे हो जाते हैं ।