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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थो भागः
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(६४००) लोह भस्मयोगः (४)
न (६४०३) लोहभस्मविधिः (३)
(र. र. स. । पू. खं. अ. ५) ( व. से. ; वृ. मा । पाण्डु. ; वृ. नि. र. । कामला. ; यो. रे. । पाण्डु.)
यद्वा तीक्ष्णदलोद्भूतं रजश्च त्रिफलाजलैः।
| पिष्ट्वा दत्वौदनं किञ्चिच्चक्रिकां प्रविधाय च ॥ लोहचूर्ण निशायुग्मं त्रिफला कटुरोहिणी।
| शोषयित्वाऽतियत्नेन प्रपचेत्पञ्चभिः पुटैः। पलिह्य सपिभ्| कामलातः सुखी भवेत् ॥ | रक्तवर्ण हि तद्भस्म योजनीयं यथातथम् ॥
लोह भस्म, हल्दी, दारुहल्दी, हर्र, बहेड़ा, शुद्ध तीक्ष्ण लोहके चूर्णको त्रिफलाके क्वाथमें आमला, और कुटकी; इनका समान भाग चूर्ण | घोट कर उसमें थोड़ासा भात मिला कर टिकिया लेकर सबको एकत्र मिला कर शहद और घीके | बनाकर सुखा लें और फिर उन्हें शरावसम्पुटमें साथ सेवन करनेसे कामला रोग नष्ट होता है। बन्द करके गजपुटकी आग दें।
( मात्रा--१-१॥ माशा ।) | इसी प्रकार ५ पुट देनेसे समस्त कार्यों में (६४०१) लोहभस्मविधिः (१)
| व्यवहार करने योग्य लाल रंगको लोह भस्म तैयार ( र. र. स. । पू. अ. ५)
हो जाती है।
(६४०४) लेोहभस्मविधिः (४) जम्बीररससंयुक्ते दरदे तप्तमायसम् । बहुवारं विनिक्षिप्तं म्रियते नात्र संशयः ॥
(र. र. स. । पू. खं. अ. ५ ) नीबूके रसमें हिंगुल मिला कर उसमें शुद्ध | र
अथ पूर्वोदितं तीक्ष्णं वसुभल्लकवासयोः। लोहको तपा तपाकर अनेक बार बुझानेसे उसकी
पुटितं पत्रतोयेन त्रिंशद्वाराणि यत्नतः ॥
शोणितं जायते भस्म कृतसिन्दूरविभ्रमम् ॥ भस्म हो जाती है।
तीक्ष्ण लोह चूर्णको सफेद पुनर्नवा और (६४०२) लोहभस्मविधिः (२)
बासेके पत्तोंके रसमें घोट घोट कर यथा विधि (र. र. स. । पू. खं. अ. ५)
शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुट में पकावें । समगन्धमयश्चूर्ण कुमारीवारिभावितम् ।।
इसी प्रकार ३० पुट देनेसे इतनी लाल भस्म पुटीकृतं कियतकालमवश्यं म्रियते ह्ययः ॥ हो जाती है कि उसे देख कर सिन्दूरका भ्रम
शुद्ध लोह चूर्णमें उसके बराबर गन्धक मिला | होने लगता है। कर दोनोंको कुमारीके रसमें घोट कर यथा विधि
(६४०५) लोहभस्मविधिः (५) शराव सम्पुटमें बन्द करके गजपुटकी आंच दें।
(र. र. स. । पू. ख. अ. ५ ) इसी प्रकार कई पुट देनेसे लोह अवश्य मर / हिङ्गुलस्य पलान्पञ्च नारीस्तन्येन पेषयेत् । जाता है।
तेन लोहस्य पत्राणि लेपयेत्पलपञ्चकम् ।।
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