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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थो भागः - - (६४००) लोह भस्मयोगः (४) न (६४०३) लोहभस्मविधिः (३) (र. र. स. । पू. खं. अ. ५) ( व. से. ; वृ. मा । पाण्डु. ; वृ. नि. र. । कामला. ; यो. रे. । पाण्डु.) यद्वा तीक्ष्णदलोद्भूतं रजश्च त्रिफलाजलैः। | पिष्ट्वा दत्वौदनं किञ्चिच्चक्रिकां प्रविधाय च ॥ लोहचूर्ण निशायुग्मं त्रिफला कटुरोहिणी। | शोषयित्वाऽतियत्नेन प्रपचेत्पञ्चभिः पुटैः। पलिह्य सपिभ्| कामलातः सुखी भवेत् ॥ | रक्तवर्ण हि तद्भस्म योजनीयं यथातथम् ॥ लोह भस्म, हल्दी, दारुहल्दी, हर्र, बहेड़ा, शुद्ध तीक्ष्ण लोहके चूर्णको त्रिफलाके क्वाथमें आमला, और कुटकी; इनका समान भाग चूर्ण | घोट कर उसमें थोड़ासा भात मिला कर टिकिया लेकर सबको एकत्र मिला कर शहद और घीके | बनाकर सुखा लें और फिर उन्हें शरावसम्पुटमें साथ सेवन करनेसे कामला रोग नष्ट होता है। बन्द करके गजपुटकी आग दें। ( मात्रा--१-१॥ माशा ।) | इसी प्रकार ५ पुट देनेसे समस्त कार्यों में (६४०१) लोहभस्मविधिः (१) | व्यवहार करने योग्य लाल रंगको लोह भस्म तैयार ( र. र. स. । पू. अ. ५) हो जाती है। (६४०४) लेोहभस्मविधिः (४) जम्बीररससंयुक्ते दरदे तप्तमायसम् । बहुवारं विनिक्षिप्तं म्रियते नात्र संशयः ॥ (र. र. स. । पू. खं. अ. ५ ) नीबूके रसमें हिंगुल मिला कर उसमें शुद्ध | र अथ पूर्वोदितं तीक्ष्णं वसुभल्लकवासयोः। लोहको तपा तपाकर अनेक बार बुझानेसे उसकी पुटितं पत्रतोयेन त्रिंशद्वाराणि यत्नतः ॥ शोणितं जायते भस्म कृतसिन्दूरविभ्रमम् ॥ भस्म हो जाती है। तीक्ष्ण लोह चूर्णको सफेद पुनर्नवा और (६४०२) लोहभस्मविधिः (२) बासेके पत्तोंके रसमें घोट घोट कर यथा विधि (र. र. स. । पू. खं. अ. ५) शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुट में पकावें । समगन्धमयश्चूर्ण कुमारीवारिभावितम् ।। इसी प्रकार ३० पुट देनेसे इतनी लाल भस्म पुटीकृतं कियतकालमवश्यं म्रियते ह्ययः ॥ हो जाती है कि उसे देख कर सिन्दूरका भ्रम शुद्ध लोह चूर्णमें उसके बराबर गन्धक मिला | होने लगता है। कर दोनोंको कुमारीके रसमें घोट कर यथा विधि (६४०५) लोहभस्मविधिः (५) शराव सम्पुटमें बन्द करके गजपुटकी आंच दें। (र. र. स. । पू. ख. अ. ५ ) इसी प्रकार कई पुट देनेसे लोह अवश्य मर / हिङ्गुलस्य पलान्पञ्च नारीस्तन्येन पेषयेत् । जाता है। तेन लोहस्य पत्राणि लेपयेत्पलपञ्चकम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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