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गुटिकाप्रकरणम् ]
वर्जनीय विशेषेण क्षाराम्लौ द्वौ रसावपि । कृत्वैत्रं रमयेन्नारीर्वह्निर्न क्षीयते नरः ॥
छिलके रहित उड़दकी दालका चूर्ण, गेहूंका आटा, तुष रहित जौका चूर्ण, शाली चावल का चूर्ण और पीपलका अत्यन्त बारीक चूर्ण ५-५ तोले लेकर सबको एकत्र मिलाकर १२|| तोले घी में भूनें और फिर उसमें २५ तोले खांड तथा ५० तोले पानी मिला कर पकायें । जब पाक तैयार हो जाय तो ५-- ५ तोले के मोदक बना कर रक्खें ।
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इनमें से सायंकालको १ मोदक पावसेर दूध के साथ खाना और क्षार तथा अम्ल पदार्थों से परहेज़ करना चाहिये |
चतुर्थी भागः
मिहिरोदयवटी रस प्रकरण में देखिये ।
( नेट-खांड की पृथकू चाशनी बना कर उसमें ओषधियांका चूर्ण मिलाकर भी मोदक बनाये जा सकते हैं ।)
इन्हें सेवन करके स्त्री समागम करने से कामाग्नि होता है । क्षीण नहीं होती ।
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(५१७९) मुण्डादिगुटिका
( वृ. नि. र. | ग्रहण्य ) मुण्डीशतावरीमुस्तावानरी दुग्धिकामृता । यष्टीकं सैन्धवं तुल्यं सूक्ष्मचूर्ण प्रकल्पयेत् ॥ चूर्णस्य द्विगुणा योज्या विजया मृदुभर्जिता । घृतस्निग्ये पचेद्भाण्डे दुग्धं दशगुणं गवाम् ॥ यावत्पिण्डत्वमापन्ना तावन्मृद्वग्निना पचेत् । पिण्डतुल्यं तु सत्क्षौद्रं मिश्री निष्कत्रयं त्रयम् ॥
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भक्षयेद्विजदेव द्वन्द्वजं ग्रहणीगदम् । पित्तवाते श्लेष्मपित्ते सम्यक् पित्ते च योजयेत् ॥
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गोरखमुण्डी, शतावर, नागरमोथा, कौचके बीज, दुद्धी, गिलोय, मुलैठी और सेंधा नमक समान भाग लेकर बारीक चूर्ण बनावें, और फिर उसमें उस समस्त चूर्णसे २ गुनी हल्की भुनी हुई भांगका चूर्ण मिलाकर सबको घृतसे चिकनी की हुई कढ़ाई में दश गुने गोदुग्धमें मन्दाग्नि पर पकायें ।
जब गाढ़ा होकर गोला सा हो जाय तो उसमें उसके बराबर शहद मिलाकर १-१ तोले के मोदक बनालें ।
इन्हें सेवन करनेसे द्वन्द्वज ( पित्तवातज, और श्लेष्म पित्तज ) संग्रहणी तथा पित्तका नाश
(५१८०) मुण्डादिगुटिका ( र . र । मुखरोग. )
मुण्डी शुण्ठी वचा कुष्ठं पाठा क्षौद्रविनिश्चितम् । गुटिकां धारयेद्दन्ते कुमिथूलहरं भवेत् ॥
गोरखमुण्डी, सोंठ, बच, कूठ और पाठा समान भाग लेकर चूर्ण बनावें और फिर उसे शहदमें मिलाकर ( बेरकी गुठली के बराबर ) गोलियां बना लें |
इनमें से एक एक गोली पीड़ा वाले दांतके नीचे रखने से दांत कृमि और शूल नष्ट हो जाते हैं।
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. (५१८१) मुस्तकादिमोदकः (भै. र. । ग्रहण्य. )
धान्यकं त्रिफला भृङ्गं त्रुटि: पत्रं लवङ्गकम् । केशरं शैलजं शुण्ठी पिप्पलीमरिचानि च ॥