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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य रत्नाकरः [लकारादि भाण्डे रुवा पुटे पाच्य स्वाङ्गशीतं समुद्धरेत् ।। मात्रा–१ माषा । लोकनाथरसो नाम क्षौद्रेर्गुाद्वयं मितम् ॥ इसे शहद या नवनीत के साथ खानेसे ४० नागरातिविषामुस्तं देवदारुवचान्वितम् । दिनमें राजयक्ष्माका नाश हो जाता है। कषायमनुपानन्तु सर्वातीसारनाशनः ॥ इसकी १-१ मात्रा हरएक पहरके बाद . पारद भस्म (या शुद्ध पारद) १ भाग देनी चाहिये । और शुद्ध गंधक ४ भाग लेकर दोनोंको एकत्र (६३७८) लोकनाथरस: (७) घोट कर कौड़ीयोंमें भरें और उनके मुखको (दूधमें पिसे हुवे) सुहागेसे बन्द कर दें; एवं उन्हें शराव ( भै. र. ; रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. ; र. चं. । सम्पुट में बन्द करके गजपुट में पकावें । इसके प्लीहा.; धन्व. । उदरा.; रसे. चि. म. । अ. ९) पश्चात् उसके स्वांग शीतल होने पर कौड़ियोंको पारदं गन्धकञ्चव समभागं विमर्दयेत् । निकाल कर पीस लें। | मृताभं रसतुल्यञ्च पुनस्तत्रैव मर्दयेत् ॥ - मात्रा--२ रत्ती । रसद्विगुणलौहश्च लौहतुल्यश्च ताम्रकम् । अनुपान-इसे शहदके साथ चाट कर | वराटिकाया भस्माथ पारदात्रिगुणं कुरु ॥ सोंठ, अतीस, नागरमोथा, देवदारु और बचका | नागवल्लीरसेनैव मईयेद्यत्नतो भिषक् । काथ पीना चाहिये। पुटेल्लघुपुटे विद्वान् स्वाङ्गशीतं समुद्धरेत् ।। ... इसके सेवनसे समस्त प्रकारके अतिसार नष्ट मधुना पिप्पलीचूर्ण सगुडां वा हरीतकीम् । होते हैं। अजाजी वा गुडेनैव भक्षयेदनुपानतः ॥ (६३७७) लोकनाथरसः (६) (लघु) यकृद्गुल्मोदरहरः प्लीहश्वयथुनाशनः । ( शा. सं. । खं. २ अ. १२; र. र. । क्षय. ) जीर्णज्वरं तथा पाण्डुकामलाञ्च विनाशयेत् ।। वराटभस्ममण्डूरं चूर्णयित्वा घृते पचेत् ।। अग्निमान्द्यश्च शमयेल्लोकनाथो रसोत्तमः॥ तत्समं मरिचं चूर्ण नागवल्या विभावितम् ॥ १-१ भाग शुद्ध पारद और गन्धककी तच्चूर्ण मधुना लेह्यमथवा नवनीतकैः।। कज्जली बना कर उसमें १ भाग अभ्रक भस्म, २ माषमात्र क्षयं हन्ति यामे यामे च भक्षितम् ॥ | भाग लोह भस्म, २ भाग ताम्र भस्म और ३ भाग लोकनाथरसो ह्येष मण्डलाद्राजयक्ष्मनुत् ।। ( पाठान्तरके अनुसार ६ भाग ) कौड़ी भस्म ले कौड़ी भस्म, और मण्डूर भस्म समान भाग कर सबको एकत्र खरल करके पानके रसमें घोट ले कर दोनेांको एकत्र खरल करके समान भाग | कर गोला बनावें और उसे शरावसम्पुटमें बन्द घीमें पकावें और जब घी शुष्क हो जाय तो १ ताम्रतस्त्रिगुणमिति पाठान्तरम् उसमें उसके बराबर काली मिर्चका चूर्ण मिला | २ " पुटेद्गजपुटे ” इति पाठान्तरम् कर सबको पानके रसमें खरल करके सुखा लें। कई ग्रन्थों में अनुपानमें गोमूत्र भी लिखा है। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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