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संप्रकरणम् ]
चतुर्थो भागः ताम्रभस्म कणा कुष्ठं प्रत्येकं मूतभागतः ॥ यदि जितेन्द्रिय पुरुष इसे शहद और धीके प्रक्षिप्य मर्दयेद् गाढं त्रिदिनं लुङ्गवारिणा। | साथ १ वर्ष तक सेवन करे तो दारुण कुष्ठ और प्रदद्यादस्य सूतस्य शृङ्गवेरसितायुतम् ॥ अन्य समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं तथा जरा और वल्लयुग्मं दीर्घतापे वातरोगे महत्यपि । अकालमृत्यु नहीं आती। निरामं नाशयेदाशु पिप्पलीमधुसंयुतम् ॥ -
लक्ष्मीविलासरसः (६) विषमज्वरजीर्णाशः क्षयमेहहलीमकाः।
(रसे. सा. सं. ; र. चि. ; रसे. चि. म.) स्वानुपानाच्छमं यान्ति रसराजप्रभावतः॥
____ प्र. सं. ५५६९ “महा लक्ष्मी विलास रसः" सेवितो मधुसर्पिा वर्षमेकं जितेन्द्रियैः ।
| देखिये. जरामरणरोगादीन्कुष्ठरोगान्सुदारुणान् ॥ लक्ष्मी विलासनामायं शङ्करेण कृतो हरेत ॥ लक्ष्मीविलासरसः (७) ... शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक १-१ भाग | (रसे. सा. सं. ; भै. र. । शिरो रोगा.) लेकर दोनोंको एक दिन खरल करके कज्जली | प्र. सं. ५५७० महा लक्ष्मी विलास रसः बनावें और फिर उसे १ दिन जम्बीरी नीबूके | (२) देखिये । रसमें घोट कर दृढ़ मूषामें बन्द करें और उस पर
(६३३८) लघुकामेश्वरगुटी ७ कपरमिट्टी करके सुखा लें। तदनन्तर इस मूषाको बालुकायन्त्रमें रख कर १२ पहरकी अग्नि दें __(यो. चि. म. । अ. ३ )
और यन्त्रके स्वांग--शीतल होने पर उसमेंसे औष- शतावरी गोक्षुरश्च कपिकच्छु उटीङ्गणम् । धको निकालकर खरल करें एवं उसमें १-१ भाग गाङ्गेरुकी बला मुस्ता मुशली खुरसाणकम् ॥ ताम्र भस्म, पीपल और कूठका चूर्ण मिला कर | समुद्रशोषो हि खराश्चविकं शाल्मली शठी । सबको ३ दिन जम्बीरी नीबूके रसमें अच्छी तरह | मकुष्ठस्य जटा माषा वाजिगन्धा च रेणुका ॥ खरल करें।
विदारी ग्रन्थिकं गुन्दं विडङ्गं जीरकं शणम् । मात्रा-६ रत्ती।
मांसी सिता वा धान्याकं विजया तूर्यभागिका ॥ ___इसे अदरकके रस और मिश्रीके साथ देनेसे | जातीपत्रं जातिफलं चातुर्जातं कटत्रिकम । जीर्णज्वर और भयङ्कर वातज रोग नष्ट होते हैं। कपरं गगनं लोहं रससिन्दूरक सिता ।।
पीपल और शहदके साथ खिलानेसे निराम- | गुटिका द्विगुणखण्डेन वृद्धकोलप्रमाणतः । ज्वरे शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
| वीर्यवृद्धिबलं पुष्टि कामदीप्तिं करोत्यलम् ॥ ___ इसके अतिरिक्त यह रस उचितानुपानके साथ शतावर, गोखरू, कौंचके बीज, उटीङ्गणके देनेसे विषमज्वर, अर्श, क्षय, प्रमेह और हलीमकको बीज, गंगेरन, खरैटीके बीज ( बीजबन्द ), नागरभी नष्ट करता है।
| मोथा, मूसली, खुरासानी अजवायन, समुद्रशोष,
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