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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] चतुर्थों भागः ५०७ लक्ष्मणा, हस्तिकर्ण पलाश, सोंठ, मिर्च, | सबको एकत्र खरल करके दन्तीमूल और त्रिफलाके पीपल, हरं, बहेड़ा, आमला, नागरमोथा, चीतामूल, रसमें पृथक् पृथक् ३-३ दिन घोट कर ६-६ बायबिडंग और असगन्ध; इनका चूर्ण १-१ | रत्तीकी गोलियां बना लें । भाग तथा लोह भस्म सबके बराबर लेकर सबको अनुपान-अदरकका रस । एकत्र खरल करें। इसके सेवनसे दोषज्वर, सन्निपात, विषूचिका, __यह लौह वृष्य वाजीकरण, कृश मनुष्योंके | विषमज्वर, अतिसार, संग्रहणी, रक्तातिसार, आम, लिये बलदाता और सर्व रोग नाशक है। | प्रमेह, शूल, सूतिका रोग और वातव्याधिका यदि कन्या ही कन्याएं उत्पन्न होती हों तो | | नाश होता है। इसके सेवनसे पुत्रोत्पत्ति हो सकती है। इसके सेवन कालमें यथेच्छ पथ्य भोजन, ( मात्रा-३-४ रत्ती।) अभ्यंग, स्नान, कर्पूरयुक्त ताम्बूल भक्षण, पुष्पमाल | धारण, हरिचन्दन लेपन और नारीकेलोदक पान (६३३२) लक्ष्मीनारायणरसः | करना चाहिये । स्त्रीसहवासका भी निषेध (भै. र. । स्त्रीरोगा. ; र. चं. । वाता.) नहीं है। .. शुद्धगन्धकमेतच्च टङ्कणं विषहिंगुलम् । (६३३३) लक्ष्मीविलासः (१) रोहिण्यतिविषा कृष्णा वत्सकाभ्रकसैन्धवम् ॥ ( भै. र.; रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. ; र. चं. ; एतानि समभागानि खल्वमध्ये विनिक्षिपेत् ।। धन्व. ; र. र. । रसायना.; रसे. चि.म.। अ. ८; दन्तिद्रावैः फलद्रावैमर्दयेच्च दिनत्रयम् ॥ .. __ वृ. यो. त. । त. १४७; धन्व. । ज्वरा. ; वल्लद्वयां वटि कृत्वा ह्याकस्य जलेर्ददेत् । न. मु. । त. ५) दोपज्वरे सन्निपाते विपूच्यां विषमज्वरे ।। पलं कृष्णाभ्रचूर्णस्य तदद्धौं रसगन्धको । अतिसारे ग्रहण्यां च रक्तामे मेहशूलजित् । तददै चन्द्रसंज्ञस्य जातीकोषफले तथा ॥ सूतिकावातदोपनो लंकेशमिव राघवः ॥ | वृद्धदारकबीजश्च बीजं धुस्तूरकस्य च । इष्टान्न भोजयेत्पथ्यमभ्यङ्गं स्नानमाचरेत् ।। | त्रैलोक्यविजयाबीजं विदारीमूलमेव च ॥ कर्पूरमिश्रताम्बूलं प्रसूनं हरिचन्दनम् ।। नारायणी तथा नागवला चातिवला तथा । नारिकेलोदकं पीत्वा नारीणां संगमेव च।। बीज गोक्षुरकस्यापि नैचुलं बीजमेव च ॥ लक्ष्मीनारायणो नाम रसानामुत्तमो रसः ॥ । एतेषां कार्षिकं चूर्ण पर्णपत्ररसैः पुनः । शुद्ध गन्धक, सुहागेकी खील, शुद्र बछनागे, निष्पिष्य वटिका कार्या त्रिशुआफलमानतः॥ शुद्ध हिंगुल, कुटकी, अतीस, पीपल, इन्द्रजौ, निहन्ति सन्निपातोत्थान् गदान् घोरान् चतुअभ्रक भस्म और सेंधा नमक समान भाग ले कर विधान् । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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