SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 508
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नस्यप्रकरणम् ] - चतुर्यो भागा रुईको लाख, संभाल, भंगरा और दारु- सबको एकत्र कूट कर ४ सेर पानीमें पकावें और हल्दीके स्वरस या काथकी पृथक् पृथक् सात सात २ सेर पानी शेष रहने पर छान कर उसे पुनः भावना दे कर सुखा लें और फिर उसकी बत्ती पका कर गाढ़ा करें । जब करछीको लगने लगे. बनाकर उसे घोके दीपकमें जलाकर स्याही इकही तो अग्निसे नीचे उतार कर ठण्डा करके लोहे या पत्थरके बरतनमें भर कर सुरक्षित रक्खें । इसे आंखमें लगानेसे पिल्ल ( पलकोंके भीत- . इसे सुबह शाम आंखमें लगानेसे नेत्र शुक्र रके शोथ ) का नाश होता है। और सव्रण शुक्र नष्ट होता है। यह एक प्रधान (६३२५) लामज्जकाद्यञ्जनम् औषध है। (यो. र. ; व. से.; वृ. नि. र. । नेत्ररोगा.) (६३२६) लोहभस्माञ्जनम् (र. चं.; वृ. नि. र. । सन्निपाता. ; भा. लामजकोत्पलसितासारिवाचन्दनद्वयैः । प्र. म. ख. २ सन्निपाता.) कार्षिकैः सारिवा प्रस्थं क्याथयेत्सलिलाढके ॥ अयोरजः श्वेतलाधमान मरिचं तथा । पादशेष परिस्राव्य पचेदादविलेपनात् । गोरोचनसमायुक्तं तन्द्रानाशनमुत्तमम् ॥ भाजने लौहशैले वा प्रातस्तस्साययअनम् ॥ लोह चूर्ण, सफेद लोध, रसौत, काली मिर्च प्रधानमेतच्छुक्रघ्नं व्रणशुक्रं शमं नयेत् ॥ | और गोरोचन समान भाग ले कर यथा विधि लामज्जक (खस भेद), नीलोत्पल, मिसरी, | चूर्ण बनावें । सफेद सारिवा, सफेद चन्दन और लाल चन्दन इसे आंख में लगानेसे सन्निपातकी तन्द्रा नष्ट ११-१। तोला तथा कृष्ण सारिवा १ सेर ले कर होती है। इति लकाराद्यानप्रकरणम् . अथ लकारादिनस्य-प्रकरणम् (६३२७) लक्ष्मणामूलयोगः । अवामनासाविवरे ऋतुस्था ___ सा पुत्रिणी स्यात्पतिसंप्रयोगात् ॥ (ग. नि. । बन्ध्या.; रा. मा. । स्त्रीरोगा. ३०) यदि ऋतुमती नारी उत्तम लक्ष्मणाकी जड़ | को घीमें पीसकर दहिने नसकोरेसे सूघे और गृह्णाति लिङ्गाङ्कित्तलक्ष्मणाया | फिर यथा समय पतिसमागम करे तो उसको पुत्र __मूलेन नस्य सघृतेन या स्त्री। प्राप्ति होती है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy