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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६०२ भारत-भैषज्य रत्नाकर [ लकारादि तदितरदिग्भवदशनकृमि लामन्जक (पीली खस) और लाल चन्दनको रचिरात् पतति निर्जीवः ॥ शुक्त ( कांजी भेद ) में पीसकर लेप करनेसे दाह जिस ओरके दांतमें कृमि हों उससे दूसरी शान्त होती है। ओरके (पैरके) अंगूठेके नख पर लांगलीकी जड़का | (६३१२) लूताविषहरो लेपः लेप करनेसे कृमि मर कर गिर पड़ते हैं। ( यो. त. । त. ७८ ) (६३०९) लागल्यादिलेपः (१) | कटभ्यर्जुनशैरीपशेलक्षीरद्रुमत्वचः । (वृ. मा. । स्त्रीरोगा.) कपायकल्कचूर्णाः स्युः कीटलूतात्रणापहाः ।। तुषाम्बुपरिपिष्टेन मूलेन परिलेपयेत् । कोयल, अर्जुनकी छाल, सिरसकी छाल, लागल्याश्चरणौ मूते क्षिप्रमापनगर्भिणी ॥ लिहसोड़ेकी छाल और पीपल की छाल; इनमें से किसी .. यदि बच्चा उत्पन्न होनेके समय अधिक बि एकका काथ बना कर पीने और उससे धोनेसे, लम्ब हो रहा हो तो लांगली (कलियारी) की जड़की | अथवा कल्क या चूर्ण बना कर खाने और लेप कांजीमें पीस कर पैरोंके तलुवोंमें लेप करनेसे शीघ्र करनेसे विषैले कीड़े और मकड़ीके व्रणको प्रसव हो जाता है। आराम होता है। __(६३१०) लागल्यादिलेपः (२) (६३१३) लोधादिलेपः (१) ( शा. सं. । खं. ३ अ. ११; व. से. । विषा.) (व. से. । नेत्ररोगा.) लागल्यतिविपालाबुजालिनीबीजमूलकैः । बहिरवलिप्त लोचनमभिलेपो धान्याम्बु सम्पिष्टः कीटविस्फोटनाशनः॥ कुपितमपि प्रसीदति क्षिप्रम् । ... . कलियारी, अतीस, कड़वी तूंबीके बीज, लोध्ररसाअनचन्दनकड़वी तोरीके बीज और मूलीके बीज समान भाग मनःशिलाकुष्ठपथ्याभिः ।। लेकर सबको एकत्र पीसकर चूर्ण बनावें । लोध, रसौत, लाल चन्दन, मनसिल, कूठ इसे कांजीमें पीस कर लेप करनेसे विषैले | और हरै समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । कीटोंके काटनेसे उत्पन्न हुवे विस्फोटक नष्ट हो आंखोंके बाहर चारों ओर इसका लेप करनेसे जाते हैं। नेत्राभिष्यन्द (आंखोंका दुखना) नष्ट होता है । (६३११) लामजकाद्युद्वर्तनम् (६३१४) लोधादिलेपः (२) .. (बृ. मा. । दाहा.) | (शा. सं. । खं. ३ अ. ११; वृ. मा. ।क्षुद्ररोगा.) लामज्जेनाथ शुक्तेन चन्दनेनानुलेपयेत् । लोध्रधान्यवचालेपस्तारुण्यपिटिकापहः। .. For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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