________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुटिकाप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
४५
मोदकों को भर कर रख दें एवं सुगंधित हो जाने । मूल पत्र और शाखायुक्त ६। सेर भांगको पर सेवन करें।
ओखली में कूट कर ३२ सेर पानीमें पकावें । मात्रा--१ तोला। समय-प्रातः काल । | जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो छान लें । ( अनुपान-दूध )
तदनन्तर उस क्वाथमें २ सेर दूध, ३ सेर १० इनके सेवनसे कामवृद्धि होती है।
तोले खांड, १ सेर शतावरका रस, आधसेर
पीपलका काथ और २ सेर घी मिला कर पुनः महामृत्युञ्जया गुटिका
पकावें । जब गाढा हो जाय तो निम्न लिखित (र. सं. क. । उल्लास ५)
प्रक्षेप द्रव्योंका चूर्ण मिलाकर १०-११ तोलेके रस प्रकरणमें देखिये।
मोदक बनाकर रक्खे । (५१७२) महारतिवल्लभो मोदकः प्रक्षेप द्रव्य-सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा,
(धन्व.; यो. र. । वाजीक.) आमला, चव्य, इलायची, दालचीनी, तेजपात, समूलपत्रशाखायास्तुलां शक्राशनस्य च । नागकेसर, चीता, पीपलामूल, धनिया, जीरा, मेथी, संरुद्धयोदूखले छित्वाऽपां द्रोणे हि तथा च वै ।। कूठ, नागरमोथा, रेणुका, सोंठ, मिर्च, पीपल, काथं पादावशिष्टन्तु वस्त्रपूतं च कारयेत् । भरंगी, तालीसपत्र, नागकेसर, काली मूसली, क्षीरप्रस्थं समादाय खण्डस्यार्द्धशतं न्यसेत् ॥ | निसोत, दन्तीमूल, गजपीपल, हींग, पोखरमूल, शनावरीरसस्याष्टौ पिप्पल्याः कुडवन्तथा।। लौंग, जावत्री, अजवायन, कालाजीरा, बंसलोचन, सर्वमेतत्समालोडय घृतपस्थेन मेलयेत् ॥ जायफल, कपूर, काकड़ासिंगी, बिदारीकन्द, अष्ट
औषधानान्ततश्चूर्ण दापयेत्पालिकं पृथक् । | वर्ग ( मेदा, महामेदा, जीवक, ऋषभक, ऋद्धि, त्रिकटुत्रिफलाचव्यमेलात्वपत्रकेशरम् ॥ वृद्धि, काकोली, क्षीरकाकोली) और ककोल चित्रकं पिप्पलीमूलं धान्यकाजाजिमेथिकाः । १।-१। तोला। कुष्ठाब्दरेणुकाव्योषभाङ्गीतालीशकेशरम् ॥
इन्हें सेवन करनेसे शुक्रदोष और दारुण तालमूली त्रिदन्ती श्रेयसी हिङ्गपौष्करम्। नपुंसकता दूर होती तथा सौन्दर्य, मेधा और लवङ्गजातिकोपञ्च यमानी कारवी तथा ॥ बुद्धिकी वृद्धि होती है। शुभा जातीफलं चन्द्रं शृङ्गी चैव विदारिका । मात्रा--१ मोदक । अनुपान-शीतलजल अष्टवर्गश्च कङ्कोलं श्लक्ष्णचूर्णञ्च कारयेत ॥ (५१७३) महारसोनपिण्डः गुडवद्विपचेद्यो मोदकं कारयेत्ततः। (भै. र.; 'यो. र.। आमवाता.; यो. त. । त. ४२) अक्षमात्रञ्च जग्वैनं शीतलं पाययेज्जलम् ॥ तुलाक्षुण्णरसोनस्य तदधै लुश्चितास्तिलाः। नाशयेच्छुक्रदोषश्च षण्ढश्चवातिदारुणम् । पात्रे तु गव्यतक्रस्य पिष्टद्रव्यैः समं क्षिपेत् ॥ श्रीकर लाघवकर मेधाबुद्धिप्रवर्द्धनम् ॥
भैषज्य रत्नावलीमें सफेद जीरा ४ पल लिखा
For Private And Personal Use Only