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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [ मकारादि (५१७१) महामदनमोदकः रजस्त्रिजातानास्तीर्थ कपूरेणाधिवासयेत् ॥ (ध. व.; र. र. । वाजीकरणा) भक्षयेत्प्रातरुत्थाय महामदनमोदकम् । त्रैलोक्य विजयापत्रं सवीजं घृतभर्जितम् । शतावरका चूर्ण १ तोला, विदारीकन्दका समे शिलातलेपश्चाच्चूर्णयेदतिचिकणम् ॥ चूर्ण १ तोला, खरैटी और कंघीकी जड़की छालका शतावरीरजश्चैव विदारीकन्दर्ज रजः । | चूर्ण १-१ तोला, गोखरु, तालमखाना और कौंचके बलातिवलयोश्चैव मूलवल्कलजं रजः ॥ बीजोंका चूर्ण १-१ तोला तथा घीमें भुनी हुई गोक्षुरक्षुरयो/जाद्रजो वानरिवीजतः । बीजयुक्त भांगकी पत्तियोंका चूर्ण २८ तोले लेकर एतदेकीकृतं यावत् शतावादिजं रजः॥ सबको एकत्र मिला और फिर उसमें २८ तोले तस्माच्चतुर्गुणं काय त्रैलोक्य विजयारजः। शतावरका रस, २८ तोले विदारीकंदका रस तथा स्वरसेऽथ शतावर्या विदार्याः स्वरसे तथा ॥ २८ तोले गायका दूध डालकर घोल दें फिर उसमें पयसाथ समे तस्मिन् गोलयेच्चूर्णसञ्चयम् । ११२ तोळे खांड मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । गोलयित्वा सितां चैव शक्रचूर्णाच्चतुर्गुणाम् ॥ जब वह गाढ़ा हो जाय तो उसमें निम्नलिखित पचेदवहितो वैद्यो मन्दमन्देन वह्निना। चीजोंका समान भाग मिश्रित चूर्ण ७ तोले मिलावे ततः पाकक्रमं दृष्ट्वा भृष्ट्वा चैवाऽसितं तिलम् ॥ काले तिल, सोंठ, मिर्च, पीपल, दालचीनी,तेजपात, बुद्धवावतारितं दद्यात् मोदकार्थ भिषग्वरः। | इलायची, सेंधा नमक, धनिया, जायफल, जावित्री, त्रिकटु त्रिसुगन्धं च सैन्धवं सधनीयकम् ॥ सुगंवबाला, सफेद जीरा, कालाजीरा, कचूर, कुन्दरु, जातीकोषफलं चैव बालकं जीरकद्वयम् । नागरमोथा, सौंफ, मुरामांसी, जटामांसी, तालीशटी कुन्दुरुखोटिश्च मुस्ता मधुरिका मुरा ॥ सपत्र, तेजपात, वारेन्द्र (?), गठीवन, हरं, सोया, मांसी तालीसपत्रं च पत्रवारेन्द्रमेव च ।। चव, देवदारु, फूलप्रियङ्गु, लौंग, धूपसरल और ग्रन्थिपर्ण शिवा चैव तथैव शतपुष्पिका ॥ छारछरीला । इनमें से तिल इत्यादि भूनने योग्य चविका देवदारुश्च सप्रियङ्गु लवङ्गकम् । चीजोंको तवे पर भून लेना चाहिए और फिर चूर्ण सरल: शैलजश्चैव सर्वमेतद्विचूर्ण येत् ॥ करके उपरोक्त पकी हुई औषधमें मिला देना अत्र यद्भर्जने युक्तं द्रव्यं तद्गन्धवृद्धये । चाहिये इसे स्वादिष्ट बनानेके लिए उचित मात्रामें भर्जयित्वा कृतं चूर्ण शक्रचूर्णस्य पादिकम् ।। सेंधा नमक और सोंठ, मिर्च, पीपलका चूर्ण भी सैन्धवं स्वादुता योग्यं देयं कटुकमेव च। मिला देना चाहिए तत्पश्चात् मोदक बना कर ततः सुमिलितं कुर्यान्मोदकं परिकल्पयेत् ॥ उन्हें दालचीनी, तेजपात, इलायची, सोंठ, मिर्च भूयस्त्रिजातके चूर्णे चूर्ण ब्यूषणजे तथा । | और पीपलके चूर्णमें आलोडित करें । फिर सोने, लोडयेन्मोदकानेतोन् सिद्धार्थानर्थ सिद्धये ॥ चांदी या कांसीके पात्रमें दालचीनी, तेजपात, काश्चने राजते पात्रे कांस्येसम्पुटके न्यसेत् । । इलायची और कपूरका चूर्ण बिछा कर उसमें इन For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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