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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९२ www.kobatirth.org (६२८५) लाक्षादितैलम् (१) ( वृ. नि. र. । विषमज्वरा. ) भारत - भैषज्य रत्नाकरः लाक्षा दशाक्षा अरुणा तदर्धा सचन्दनं लोहितचन्दनं च । त्वक्पत्रकं वारि मुरा समुस्ता प्रत्येकमेतानि पलोन्मतानि ॥ किराततिक्तस्त्रिवृता सविश्वा मृता कणाकण्टकार्यः । विडङ्गविश्वामलकानि वासा रसा निशावारुणसिन्धुवाराः ॥ एतानि देयानि पृथक्पलार्थ - मानानि सर्वाणि च औषधानि । heat मtषां विदधीत गव्य दुग्धेन वै सार्धोन्मिन ॥ तैलं तिलानां तु तुलानुमानं तेनैव कल्केन शनैः पचेत्तत् । हन्याज्ज्वरांस्तैलमिदं समस्ता कुर्याद्वलं वीर्यमतीव पुष्टम् ॥ विमर्दनादाशु परिश्रमं भ्रमं शमं नयेत्सञ्जनयेत् तं तनोः । तथा व्यथामस्थिसमुद्भवामपि प्रहृत्य निद्रां समुपार्जयेत्सुखम् ॥ कल्क --- लाख ९२ ॥ तोले, मजीठ ६ । तोले तथा सफेद चन्दन, लाल चन्दन, दालचीनी, तेजपात, सुगन्धवाला, मुरामांसी और नागरमोथा ५ - ५ तोले एवं चिरायता, निसोत, सोंठ, गिलोय, पीपल, पित्तपापड़ा, कटेली बायबिडंग, सोंठ, आमला, बासा, काकोली, हल्दी, बरनेकी छाल और लकारादि सम्भालु २॥ - २॥ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२|| सेर तिलके तेलमें १८ ||| सेर गोदुग्व और उपरोक्त कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें । जब दूध जल जाए तो तेलको छान लें। यह तेल समस्त ज्वरोको नष्ट और बल वीर्य की वृद्धि करता है । इसकी मालिशसे थकान और भ्रम शीघ्र ही नष्ट होता तथा शरीरकी कान्ति बढ़ती है । यह तेल अस्थियोंकी वेदनाको भी नष्ट कर देता है और इसकी मालिशसे गहरी नींद आ जाती है । (६२८६) लाक्षादितैलम् (२) ( भै. र. धन्व बृ. नि. र. ; व. से. । बालरोग; यो त । त. ७०; ग. नि. । बालरोगा. ११; ग. नि. । परिशि. तैला. २; वा. भ. 1 उ. अ. २; व. से. । ज्वरा; वृ. नि. र. | (सर्वज्वरा.) लाक्षारससमं सिद्धं तैलं मस्तु चतुर्गुणम् । रास्नाचन्दन कुण्ठाब्दवाजिगन्धानिशायुगैः ॥ शताह्वादारुयष्ट्याह्नमूर्वातिक्ताहरेणुभिः । बालानां ज्वररक्षोघ्नमभ्यङ्गाद्बलवर्णकृत् ॥ कल्क रास्ना, सफेद चन्दन, कूठ, नागरमोथा, असगन्ध, हल्दी, दारूहल्दी, सोया, देवदारुमुलैठी, मूर्खा, कुटकी और रेणुका १-१ तोला लेकर सबको एकत्र पीस लें 1 १०४ तोले तिलके तेल में उपरोक्त कल्क, १०४ तोले लाखका रस और ४१६ तोले मस्तु For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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