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(६२८५) लाक्षादितैलम् (१)
( वृ. नि. र. । विषमज्वरा. )
भारत - भैषज्य रत्नाकरः
लाक्षा दशाक्षा अरुणा तदर्धा
सचन्दनं लोहितचन्दनं च । त्वक्पत्रकं वारि मुरा समुस्ता प्रत्येकमेतानि पलोन्मतानि ॥ किराततिक्तस्त्रिवृता सविश्वा
मृता कणाकण्टकार्यः । विडङ्गविश्वामलकानि वासा
रसा निशावारुणसिन्धुवाराः ॥ एतानि देयानि पृथक्पलार्थ -
मानानि सर्वाणि च औषधानि । heat मtषां विदधीत गव्य
दुग्धेन वै सार्धोन्मिन ॥ तैलं तिलानां तु तुलानुमानं
तेनैव कल्केन शनैः पचेत्तत् । हन्याज्ज्वरांस्तैलमिदं समस्ता
कुर्याद्वलं वीर्यमतीव पुष्टम् ॥ विमर्दनादाशु परिश्रमं भ्रमं
शमं नयेत्सञ्जनयेत् तं तनोः । तथा व्यथामस्थिसमुद्भवामपि
प्रहृत्य निद्रां समुपार्जयेत्सुखम् ॥ कल्क --- लाख ९२ ॥ तोले, मजीठ ६ । तोले तथा सफेद चन्दन, लाल चन्दन, दालचीनी, तेजपात, सुगन्धवाला, मुरामांसी और नागरमोथा ५ - ५ तोले एवं चिरायता, निसोत, सोंठ, गिलोय, पीपल, पित्तपापड़ा, कटेली बायबिडंग, सोंठ, आमला, बासा, काकोली, हल्दी, बरनेकी छाल और
लकारादि
सम्भालु २॥ - २॥ तोले लेकर सबको एकत्र पीस लें ।
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१२|| सेर तिलके तेलमें १८ ||| सेर गोदुग्व और उपरोक्त कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें । जब दूध जल जाए तो तेलको छान लें।
यह तेल समस्त ज्वरोको नष्ट और बल वीर्य की वृद्धि करता है ।
इसकी मालिशसे थकान और भ्रम शीघ्र ही नष्ट होता तथा शरीरकी कान्ति बढ़ती है । यह तेल अस्थियोंकी वेदनाको भी नष्ट कर देता है और इसकी मालिशसे गहरी नींद आ जाती है । (६२८६) लाक्षादितैलम् (२)
( भै. र. धन्व बृ. नि. र. ; व. से. । बालरोग; यो त । त. ७०; ग. नि. । बालरोगा. ११; ग. नि. । परिशि. तैला. २; वा. भ. 1 उ. अ. २; व. से. । ज्वरा; वृ. नि. र. | (सर्वज्वरा.)
लाक्षारससमं सिद्धं तैलं मस्तु चतुर्गुणम् । रास्नाचन्दन कुण्ठाब्दवाजिगन्धानिशायुगैः ॥ शताह्वादारुयष्ट्याह्नमूर्वातिक्ताहरेणुभिः । बालानां ज्वररक्षोघ्नमभ्यङ्गाद्बलवर्णकृत् ॥
कल्क रास्ना, सफेद चन्दन, कूठ, नागरमोथा, असगन्ध, हल्दी, दारूहल्दी, सोया, देवदारुमुलैठी, मूर्खा, कुटकी और रेणुका १-१ तोला लेकर सबको एकत्र पीस लें 1
१०४ तोले तिलके तेल में उपरोक्त कल्क, १०४ तोले लाखका रस और ४१६ तोले मस्तु
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