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तैखप्रकरणम् ]
चतुर्थी भागः
अथ लकारादितैलप्रकरणम्
(६२७६) लक्ष्मीविलासतैलम्
( यो. र. । क्षय. )
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एलाश्रीखण्डरास्ना जतुनखशशिनः कोलकं चाथ मुस्ता
बालत्वग्दारुकृष्णागुरुतग
रजटा कुष्ठमेतत्समांशम् । त्रैगुण्यं कालरालं सुदृडमरुकायन्त्रतः सिद्धमेततैलं पुष्पैश्च भाव्यं परिमलमिलितं नामतो गन्धतैलम् ॥ एतलक्ष्मीविलासं जनयति
जगती नायः सम्प्रयुक्तं युक्त्या नाना च रोगान्निखिल
गदहरं वातसङ्घातहन्तृ । पीतं ताम्बूलवल्लीदल मिलितमलं जाठरं वह्निमिदं कुर्यादुर्नामक्षयमपि नितरामङ्गसम्मर्दनेन ॥
छोटी इलायची, सफेद चन्दन, रास्ना, लाख, नखी, कपूर, कंकोल, नागरमोथा, सुगन्धवाला, दालचीनी, देवदारु, अगर, तगर, जटामांसी और कूल १-१ भाग तथा काला राल सबसे ३ गुनी लेकर सबको एकत्र कूट कर डमरुयत्र (अथवा पाताल यन्त्र) द्वारा तैल निकालें और उसमें सुगन्धित फूलको बसा लें ।
यह तैल वातजन्य अनेक रोगोंको नष्ट करता है ।
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इसे पानमें खानेसे अग्नि दीप्त होती है और इसकी मालिश से अर्श, दाद और क्षयका नाश होता है ।
(६२७७) लघुकासीसाद्यं तैलम् (ग.नि. । तैला. २ ) काशी सलाङ्गली दन्तीकरवीरामलैः पचेत् । तैलमर्कपयोन्मिश्रमभ्यङ्गात्पायुकीलजित् ॥
कसीस, लाङ्गलीमूल, दन्तीमूल, करवीर (कर) की जड़ और आमला; इनके कल्क और आकके दूधके साथ तैल सिद्ध करें ।
इसकी मालिश से अर्श के मस्से नष्ट होते हैं । (heat प्रत्येक वस्तु १ तोला, सरसोंका तेल ४० ताले, आकका दूध २ सेर । )
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(६२७८) लघुक्षारतैलम् ( यो. त. । त. ७० ) शुकमूलकण्ठीनां क्षारो हिङ्गु सनागरम् । शुक्तं चतुर्गुणं दद्यात्तैलमेतद्विपाचयेत् ॥ बाधिर्यं कर्णशूलं च पूयस्रावं च कर्णयोः । कृमयश्चापि नश्यन्ति तैलस्यास्य च पूरणात् ॥
सूखी मूलीका क्षार, सोंठका क्षार, होंग और सांठ; इनके कल्क तथा ४ गुणे शुकके साथ तैल सिद्ध करें । -
इसे कान में डालने बधिरता, कर्मशूल, पीप निकलना और कृमि नष्ट होते हैं ।
( कल्ककी प्रत्येक वस्तु १| तोला; शुक्त २ सेर; तिलका तेल आधा सेर । )