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चूर्ण प्रकरणम् ]
इसे सात दिन तक तक के साथ सेवन करनेसे अर्श नष्ट हो जाती है ।
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चतुर्थी भागः
( मात्रा - २ - ३ माशे । ) (६२३३) लशुनयोगः ( ग. नि. । उदररोगा . ) शुनं पिप्पलीमूलमभयां चैव भक्षयेत् । पिबेद्गोमूत्र गण्डूवं प्लीहरोगविमुक्तये ॥
लहसन, पीपलामूल और हर्र समान भाग ले कर सबको एकत्र पीस लें ।
इसे गोमूत्र के साथ सेवन करने से प्लीहा रोग नष्ट होता है।
(६२३४) लशुनाद्यं चूर्णम् ( वृ. नि. र. | अजीर्णा. ) लशुनजीरक सैन्धवसञ्चलं त्रिकटु मठचूर्णमिदं समम् । सपदि निम्बुरसेन विषूचिकां हरति भो रतिभोगविचक्षणे ॥ लहसन, जीरा, सेंधा, सञ्चल : (काला नमक), सोंठ, मिर्च, पीपल और हींग समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे नीबू के रसके साथ सेवन करने से विसूचिकाको तुरन्त आराम होता है ।
लाईचूर्णम् प्रकरण में देखिये |
(६२३५) लाक्षादिचूर्णम् (१) ( वा. भ. । चि. अ. १८ ) लाक्षादन्तीमधुरसावर द्वीपिपाठाविड प्रत्यक्पुष्पीत्रिकटुरजनी सप्तपर्णाटरूपम् ।
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रक्तानिम्बं सुरतरुकृतं पञ्चमूल्यौ च चूर्ण पीत्वा मासं जयति हितभुगव्यमूत्रेण कुष्ठम् ॥
लाख, दन्तीमूल, मूर्वा, हरे, बहेड़ा, आमला, चीता, पाठा, बायबिडंग, चिरचिटा ( अपामार्ग ), सोंठ, मिर्च, पीपल, हल्दी, सतौना, बोसा, मजीठ, नीम, देवदारु और दशमूल समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे गोमूत्र के साथ सेवन करने और पथ्यपूर्वक रहनेसे १ मासमें कुछ नष्ट हो जाता है ।
(६२३६) लाक्षादिचूर्णम् (२) ( यो र. । उरःक्षत व. से. । क्षतक्षय. ) लाक्षाचूर्ण सुष्ठुकृतं क्षौद्राज्येनान्वितं क्षीरम् । शमयति शोषोद्भूतं वमनं रक्तस्य सिद्धमिव ॥
दूध में शहद और घी मिलाकर उसके साथ लाखका चूर्ण सेवन करने से शोषजनित रक्तकी वमन नष्ट होती है।
(६२३७) लाक्षादियोग : (१) ( यो. र. । रक्तपिता; वृ. नि. र.; व. से । रक्तपित्ता. )
क्षीरेण लाक्षां मधुमिश्रितेन
प्रपीय जीर्णे पयसाऽन्नमद्यात् । सा निहन्याद्रुधिरं क्षतोत्थम् कान्तार्जुनानामथवापि कल्कः ॥ दूध में शहद मिलाकर उसके साथ लाखका चूर्ण फांकने और औषध पचने पर दूध भात खानेसे क्षतज रक्तस्राव शीघ्र ही बन्द हो जाता है ।
सफेद दूब और अर्जुन ( के बीजों ) का कल्क सेवन करने से भी रक्तस्राव चन्द हो जाता है ।
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