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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिश्रप्रकरणम् चतुर्थों भागः यह रसोला रोचक, अत्यन्त स्वादिष्ट और । (६१८२) रामठाद्या वतिः कामोत्तेजक है। (व. से. । गुल्मा.) यह राजाओंके सेवन करने योग्य पदार्थ है। रामठधमविव्योषगुडमूत्रविपाचिता । __(६१८०) रसोनवटक: गुदेऽङ्गुष्ठसमा वर्तिविधेयानाहशूलनुत् ॥ (वृ. नि. र. । वातव्या.) हींग, घरका धुंवा, बिड नमक; सांठ, मिर्च, रसोनगुलिकां माषविदलं परिपेष्य च । पीपलका चूर्ण और गुड़ समान भाग लेकर सबको योजयेत्पिष्टिकां कान्तां सैन्धवादकहिङ्गभिः॥ | एकत्र मिला कर ( ८ गुने ) गोमूत्रमें पकावें और ततस्तु वटकान्कृत्वा तिलतैले पचेच्छनैः।। गुड़के समान गाढ़ा हो जाने पर उसकी अंगूठेके भक्षयेत्तान्यथावह्नि हनुस्तम्भी सुखी भवेत् ॥ | समान मोटी बत्तियां बना लें । ल्हसनकी गुली और उर्दकी दाल समान भाग | इनमें से एक एक बत्ती गुदामें रखनेसे अफारे लेकर दोनोंकी पिठी बनावें और उसमें स्वाद योग्य | और शूलका नाश होता है। सेंधानमक, अदरक तथा हींग मिला कर वटक __(६१८३) रास्नादिपयः (१) (बरे) बना लें और उन्हें मन्दाग्नि पर तिलके तेलमें ( वृ. मा. । योनि.) तल लें। रास्नाश्वदंष्ट्राषकैः शृतं शूलहरं पयः । इन्हें यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे रास्ना, गोखरु, और बासेके साथ दूध सिद्ध हनुस्तम्भ नष्ट होता है। करके पीनेसे योनिशूल नष्ट होता है । (६१८१) राजिकादिशिखरिणीयोगः (प्रत्येक ओषधि १ तोला । दूध २४ तोले। (वृ. नि. र. । अरुचि.) पानी ९६ तोले । सबको एकत्र मिलाकर पकावें। राजिका जीरको कुष्ठो भृष्टहिङ्गु च नागरम् । जब पानी जल जाए तो दूधको छान लें।) सैन्धवं दधि गोः सर्व वस्त्रपूतं प्रकल्पयेत् ॥ (६१८४) रास्नादिपयः (२) तावन्मानं क्षिपेत्तत्र यथा स्याद्रुचिरुत्तमा । (यो. र. ; वृ. नि. र. । स्त्रीरोगा.) तक्रमेतद्भवेत्सद्यो रोचनं वह्निदीपनम् ॥ रास्नाश्वगन्धाकृषकों निशूलहरं पयः । राई, जीरा, कूठ (मीठा), भुनी हुई हींग, | गुडूचीत्रिफलादन्तीक्वाथैश्च परिषेचनम् ॥ सेठ और सेंधा नमक समान भाग लेकर चूर्ण | रास्ना, असगन्ध और बासेके साथ दूध बनावें । तदनन्तर कपड़ेसे छने हुवे गायके दहीमें पकाकर पीनेसे योनिशूल नष्ट होता है । यथारुचि यह चूर्ण मिला लें। (प्रत्येक ओषधि १ तोला; दूध २४ तोले, ___इसे पीनेसे रुचि बढ़ती और अग्नि दीप्त पानी ९६ तोले; सबको एकत्र मिलाकर पकावें। होती है। | जब पानी जल जाय तो दूधको छान लें।) . For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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