SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 463
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [रकारादि केलेकी पक्की फलीको मथकर उसमें आमलेका (६१७९) रसाला रस और शहद मिला कर पिलावें तथा ऊपरसे (वृ. यो. त. । त. १४७; व. से. ; यो. र.। खांडयुक्त दूध पिलावें। वाजीकरणा.) यह प्रयोग सोम रोगमें अत्यन्त गुणकारी है। दनोर्धाढकमीषदम्लमधुरं (६१७६) रम्भाफलयोगः (२) खण्डस्य चन्द्रगुतेः। (धन्व.। सोमरोगा.) प्रस्थं क्षौद्रपलं पलं च हविपः कदलीनां फलं पक्वं विदारी च शतावरीम् । शुण्ठयाश्चतुर्मापकाः ॥ क्षीरेण पाययेत्पातरपां धारणमुत्तमम् ।। अक्षार्ध मरिचाद्विडङ्गत इह केलेकी पक्की फली तथा विदारीकन्द और द्वौ माषकावेकतः। शतावरका चूर्ण समान भाग लेकर तीनोंको एकत्र कृत्वा शुक्लपटे शनैः करतलेमिली कर एकजीव कर लें। नोन्मथ्य विस्रावयेत् ॥ _इसे प्रातःकाल दूधके साथ सेवन करनेसे मृदभाण्डे मृगनाभिचन्दनरसस्त्रियांका सोमरोग नष्ट हो जाता है। स्पृष्टेऽगुरुधुपिते । (६१७७) रसाञ्जनयोगः सत्कर्पूररजोरजस्पृशि भृशं (वृ. मा., यो. र.; वं. से. । बालरोगा.) दिव्या रसाला भवेत् ॥ गुदपाके तु बालानां पित्तनीं कारयेक्रियाम् । या पीता परमेश्वरेण सुरमा रसाञ्जनं विशेषेण पानाभ्यअनयोहितम् ॥ सेयं रसाला तथा । बालकोंकी गुदा पक जाए तो पित्तनाशक राज्ञां मन्मथदीपनी सुरुचिरा उपचार करना चाहिये और विशेषतः रसौत कान्ता च नित्य प्रिया ॥ लगाना और वही पिलाना चाहिये ।। मधुराम्ल ( खटमिट्ठा ) दही २ सेर, स्व(६१७८) रसाञ्जनादियोगः च्छ सफेद खांड (मिश्री) १ सेर, शहद १० तोले, ( यो. र. ; बं. से. ; वृ. नि. र. । कर्णरो. ) घी १० तोले तथा सोंठका चूर्ण ५ माशे, काली घृष्टं रसाधनं नार्याः क्षीरेण क्षौद्रसंयुतम् ।। | मिर्चका चूर्ण ७|| माशे, और बायबिडंगका चूर्ण प्रशस्यते चिरोत्थे तत्सास्रावे पूतिकर्णके ॥ २॥ माशे ले कर सबको एकत्र मिलाकर अच्छी स्त्रीके दूधमें रसौतको घिसकर उसमें (उसके | तरह मथे और फिर सफेद वस्त्रसे छान लें। तथा बराबर) शहद मिला लें। अन्तमें सुगन्ध योग्य कपूर मिला दें। इसे स्रावयुक्त पुराने पूतिकर्ण रोगमें कानमें | इसे कस्तूरी और चन्दन लिप्त तथा अगरसे डालना चाहिये। धूपित मृत्पात्रमें रखना चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy