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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
४३३
एकत्र
सिद्धे पाके पुनर्देयं घृतं पलचतुष्टयम् । । १ भाग यह चूर्ण और १ भाग पारद भस्मको सर्वरोगेषु संयोज्यं महामृतरसायनम् ॥ गुल्मं पञ्चविधं हन्ति यकृत्प्लीहोदराणि च । इसे शहदके साथ सेवन करनेसे वमन नष्ट कामलां पाण्डुरोगश्च शोथं जीर्णज्वरं तथा ॥ | होती है। रोगान् सर्वानिहन्त्याशु भास्करस्तिमिरं यथा ॥ ( मात्रा--२ रत्ती । )
सांठ, मिर्च, पीपल, हर, बहेड़ा, आमला, (६१२२) रसेन्द्रगुटिका (१) नागरमोथा, बायबिडंग, सफेद जीरा, काला जीरा,
( भै. र. । राजय.) अजवायन, अजमोद, चिरायता, निसोत, दन्तीमूल,
कर्ष शुद्धरसेन्द्रस्य स्वरसेन जयाद्रयोः । नीमकी छाल और सेंधा नमक; इनका चूर्ण तथा अभ्रक भस्म १०-११ तोला, लोह भस्म १० तोले
शिलायां खल्लयेत्तावद्यावत्पिण्डं घनं भवेत् ॥ एवं खांड १ सेर ( ८० तोले ), त्रिफलाका काथ
जलकर्णाकाकमाचीरसाभ्यां भावयेत् पुनः । २ सेर और जम्बीरीका रस २ सेर ले कर सबको
सौगन्धिकपलं भृङ्गस्वरसेन सुभावितम् ॥
चूर्णितं रससंयुक्तमजाक्षीरपलद्वये । एकत्र मिला कर मन्दाग्निपर पकायें और जब पाक
खल्लितं घनपिण्डन्तु गुटीः स्विन्नकलायवत् ॥ तैयार हो जाय तो उसमें आधा सेर घृत मिलाकर
सर्वरूपं क्षयं कासं रक्तपित्तमरोचकम् । सुरक्षित रक्खें ।
अपि वैद्यशतैस्त्यक्तमम्लपित्तं नियच्छति ॥ इसके सेवनसे ५ प्रकारका गुल्म, यकृतोदर,
१। तोला शुद्ध पारदको पत्थरके खरलमें प्लीहोदर, कामला, पाण्डु, शोथ, जीर्णज्वर और
डालकर जयन्ती और अदरकके रस में इतना घोटें अन्य अनेक रोग नष्ट होते हैं।
कि वह पिण्डाकार हो जाय । तदनन्तर उसे जल( मात्रा--११-२ माशे ।) कर्णा और मकोयके रसकी १-१ भावना दें। (६१२१) रसेन्द्रः
फिर भंगरेके रसमें घुटा हुवा ५ तोले शुद्ध गन्धक ( भै. र. । छछ.)
लेकर उपरोक्त पारदमें डालें और दोनोंकी कज्जली
बनाकर उसमें २० तोले बकरीका दूध मिलाकर अजाजीधान्यकृष्णाभिः
इतना घोटें कि वह गोली बनाने योग्य हो जाय । सक्षौद्राभिः कटुत्रिकैः।
तत्पश्चात् उसकी उबली हुई मटरके समान एभिः साई भस्ममूतः
गोलियां बना लें। सेव्यो वान्ति प्रशान्तये ॥
इनके सेवनसे सम्पूर्ण लक्षण युक्त क्षय, खांसी, जीरा, धनियां, सांठ और मिर्च १-१ भाग | रक्तपित, अरुचि और सैकड़ों वैद्योंसे त्यक्त अम्लतथा पीपल २ भाग ले कर चूर्ण बनावें और फिर पित्त रोग नष्ट होता है।
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