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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [रकारादि अपहरति गुटी मुखस्थितेय | प्रभाते सितया सार्धमशिता शीतवारिणा । सकलसमुत्थितदाहमाश्रयेत्ताम् ॥ एकेन दिवसेनैषा नवज्वरहरा भवेत् ।। शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, कपूर, सफेद चन्द- शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, नका चूर्ण, दो प्रकारकी खस, नागरमोथा और शुद्ध हिंगुल ३ भाग और शुद्ध जमालगोटा ४ भाग सुगन्धबालाका चूर्ण समान भाग लेकर प्रथम पारे लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य फिर उसमें अन्य औषधे मिला कर सबको दन्ती ओषधियां. मिलाकर सबको पानीमें घोटकर गोलियां मूलके काथमें घोट कर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें। बना लें। ___इन्हें मुखमें रखनेसे हर प्रकारकी दाह नष्ट इनमेंसे १ गोली प्रातःकाल मिश्रीमें मिला होती है। कर ठण्डे पानी के साथ सेवन करनेसे नवीन ज्वर (६१०७) रसादिचूर्णम् एक ही दिनमें नष्ट हो जाता है। ( यो. र. । तृषा. , वृ. नि. र. । तृष्णा.) (६१०९) रसादिवटी (२) रसगन्धककर्पूरैः शैलोशीरमरीचकैः । ( वृ. नि. र. । ज्वरा.) ससितैः क्रमबैश्च सूक्ष् कृत्वा त्वहर्मुखे ॥ रसो गन्धो विषं शुण्ठी पिप्पली मरिचानि च । त्रिगुआपमितं खादेत्पिबेत्पर्युषिताम्बु च ।। पथ्या विभीसकं धात्री दन्तीबीजं च शोधितम्॥ भृशं तृषां निहन्त्येवमश्विभ्यां च प्रकाशितम् ॥ चूर्णमेषां समांशानां द्रोणपुष्पीरसैर्भवेत् । शुद्ध पारद १ भाग, शुद्र गन्धक २ भाग, वटी माषनिभां कुर्याद्भक्षयेन्नूतनज्वरे च ॥ कपूर ३ भाग, शिलाजीत ४ भाग, खस ५ भाग, काली मिर्च ६ भाग, और मिश्री ७ भाग लेकर . शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध बछनाग, सेठ, प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और फिर उसमें पीपल, काली मिर्च, हर्र, बहेड़ा, आमला और शुद्ध अन्य ओषधियांका बारीक चूर्ण मिलाकर सबको जमालगोटा समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी अच्छी तरह खरल करें। कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियांका प्रातःकाल इसमेंसे ३ रत्ती चूर्ण खा कर चूर्ण मिला कर सबको गूमाके रसमें घोट कर उड़ऊपरसे बासी पानी पीनेसे प्रवृद्ध तृषा भी शान्त | दके बराबर गोलियां बना लें। हो जाती है। इनके सेवनसे नवीन ज्वर नष्ट होता है । (६१०८) रसादिवटी (१) (६११०) रसायुद्धृलनम् (वृ. नि. र. । ज्वरा.) (यो. र. । सन्निपात.) रसं गन्धं च दरदं जैपालं क्रमवर्द्धितम् । रसविषमरिचमहेशपियफलभस्मैकभूचतुर्वसुभिः । दन्तीरसेन सम्पिष्य वटी गुजामिता कृता ॥ । भार्गमितमुधुलनमिदमतिस्वेदशैत्यहरम् ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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