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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२१ रसपकरणम् ] चतुर्थों भागः सा यन्त्रे सिकताख्यके तलविले पक्त्वाऽर्कयामं संमर्य गाढं सकलं सुभाण्डे हिमं तां कजली काचकृते निदध्यात् ॥ भित्वा कुङ्कुमपिअरं रसवरं भस्माददेवैद्यराट् ॥ संवेष्टय मृत्कपटकैर्घटीं तां पाके रुद्धं मुखं कूप्या नवसारेण जायते । मुखे सचूर्णी गुटिकां च दत्त्वा । ततः शलाकया कुर्यात्कूपिकानाशशान्तये ॥ अनेन विधिना पाका यावन्तोऽस्य भवन्ति हि क्रमाग्निना त्रीणि दिनानि पक्त्वा तावन्तो हि गुणोत्कर्षा जायन्ते रसभस्मनः ॥ तां वालुकायन्त्रगतां, ततः स्यात् ॥ वन्धकपुष्पारुणमीशजस्य शुद्ध पारद और गन्धक ४-४ भाग तथा भस्म प्रयोज्यं सकलामयेषु । नौसादर २ भाग ले कर यथा विधि कज्जली निजानुपानैमरणं जरां च बनावें और उसे सात कपड़मिट्टी की हुई आतशी शीशीमें भर कर १२ पहर तक बालुका-यन्त्रमें निहन्ति वल्लक्रमसेवनेन ॥ पकावें । बालू वाली हाण्डीकी तलीमें १ छेद कर | 'गन्धस्य भागो नवसादरस्य' इति मुख्यः देना चाहिये । पाठः । 'भागशब्दस्तु कर्षत्रयवाची' इति पाकके समय नौसादर उड़कर शीशीके मुख वृद्धाः । केचन पवनाशनशब्देन सीसकं व्यापर आ लगेगा और उसे बन्द कर देगा, जिससे | चक्षते; तत्तु धातुवादे उपयुज्यत इति ज्ञेयम् । शीशीके फूट जानेका भय है; अतः जब जब | आरुण्योत्पत्त्यै कूपीमुखे मुद्रा कार्या इति के शीशीका मुख नौसादरसे बन्द हो जाय तब तब चिद्वदन्ति, अन्ये मुद्रामदत्त्वैव रसभस्म संपादउसे लोहेकी शलाकासे खोलते रहना चाहिये । । यन्ति; यथासंप्रदाय व्यवस्था ॥ १२ पहर पश्चात् शीशीके स्वांग शीतल होने शुद्ध पारद १ भाग (११ तोला ) और पर उसे तोड़ कर उसके गले में लगे हुवे रस सि- | गन्धक ३ कर्ष ( ३॥ तोले ) तथा शुद्ध शीशा न्दूरको निकाल लें। १। माशा लेकर प्रथम शीशेको गला कर पारदमें उक्त विघिसे जितनी बार अधिक पाक किया | | डाल कर खरल करें और जब शीशा उसमें मिल जायगा, रस, उतना ही अधिक गुणदायक बनेगा। जाए तो उसमें गन्धक डाल कर कज्जली बनावें । तदनन्तर इस कज्जलीको कपरमिट्टी की हुई आतशी (६०९९) रससिन्दूरम् (४) शीशीमें भर कर उसके मुख पर खिरिया मिट्टीका ( आ. वे. प्र. । अ. १; रसे. सा. स. ; यो. र.) डाट लगा कर उसे गुड़ चूनेसे बन्द कर दें और भागो रसस्य त्रय एव भागा । बालुका-यन्त्रमें रख कर ३ दिन तक क्रमवर्धित गन्धस्य माषः पवनाशनस्य। | अग्नि जलावें । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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