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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०८ www. kobatirth.org भारत - भैषज्य - रत्नाकरः (६०७१) रसभस्मयोगः (२) ( वृ. यो. त. । त. १०४; यो. र. । मेदरोगा . ) रसभस्म वलमात्रं लीवा मधुना पिवेदनु क्षौद्रम् । कोष्णाम्बुना समेतं स्थौल्यं मेदःकृतं जयति ॥ पारद भस्मको शहद में मिला कर चाटने के पश्चात् मन्दोष्ण जलमें शहद मिलाकर पीनेसे मेदजन्य स्थूलता नष्ट होती है । मात्रा -- ३ रत्ती । (६०७२) रसभस्मविधिः (१) ( र. चि. म. । स्तबक १ ) दशटङ्कावधिः सुतो गन्धकं नवसादरम् । सर्वकज्जलिकां कृत्वा काचकूप्यां निधापयेत् ॥ ततोऽष्टयाम पर्यन्तं शनैरग्निदीपनम् । इति सिद्धो भवेदेष पद्मरागनिभप्रभः ॥ माषमात्रः प्रदातव्यो सर्वरोगविनाशनः । रस: पर्पटिकाख्ययं रक्तपर्पटिकासमः ॥ सर्वत्रैव प्रदातव्यो ह्यनुपानविभेदतः ॥ शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक और नौसादर १०१० टङ्क (५०-५० माशे ) कर कज्जली बनावें और उसे कपड़ मिट्टी की हुई आतशी शीशी में भर कर उसे ( बालुकायन्त्र में ) ८ परकी अग्नि दें | मात्रा -- १| भाषा 1. "" इस भस्मको “ पर्पटिका रस और यह रक्तपर्पटी के समान होती है । इस क्रिया से पद्मराग मणिके समान पारदभस्म तैयार हो जायगी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ रकारादि अनुपान भेदसे यह समस्त रोगोंको नष्ट करती है । ( व्यवहारिक मात्रा - - १ रत्ती । ) (६०७३) रसभस्मविधिः (२) (रसगुटी) ( र. चि. म. । स्तब. १ ) तुल्यं च शिखरीमूलं वारिणा मर्दयेद्दृढम् । मृषां लेपयेन्मध्ये तन्मध्ये निक्षिपेद्रसम् ॥ पञ्चङ्कप्रमाणं तु भूषामङ्गारके क्षिपेत् । एवं बद्धो भवेत्सूतो मूषान्तःस्थो दृढो भवेत् ॥ मूषामध्यगतस्तिष्ठेन्मुखरोग विनाशनः । शरीरे क्रमते सूतो जरापलितनाशनः ॥ स्तम्भयेच्छत्रसम्पातं कामोत्पादनकारकः । पुनर्नवं वपुः कुर्यात्साधकस्य न संशयः ॥ अतिवेगो भवेत्कामे महाबलपराक्रमः । क्षुद्धोधो जायतेऽत्यर्थमत्यर्य बलवान्भवेत् ॥ अत्यर्थं जनयेत्काममत्यर्थं लभते सुखम् । अत्यर्थी लभते पुष्टिं बलहानिर्न जायते ॥ २५ माशे अपामार्ग मूल (चिरचिटेकी जड़) को पानी में पीस कर एक मिट्टीकी मूषाके भीतर उसका लेप कर दें और फिर उसमें २५ माशे शुद्ध पारद डाल कर मूषाको अंगारों पर रख दें। इस प्रकार पाक करने से पारद कठिन हो जाता है । ( इस पारदकी गोली बंध सकती है | ) यह गुटिका मुख रोग नाशक है और जरा, पलित को नष्ट करती तथा काम शक्तिको अत्यन्त कहते हैं प्रबल कर देती है । एवं बल, पराक्रम, क्षुधा और पुष्टिकी अत्यधिक वृद्धि करती है । For Private And Personal Use Only
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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